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उत्तराखंड में पलायन: एक विस्तृत अध्ययन

उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से जाना जाता है, प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से यहां पलायन (Migration) एक बड़ी समस्या बन गया है। विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग रोजगार, शिक्षा और बेहतर जीवन स्तर की तलाश में शहरी क्षेत्रों और दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।

पलायन की पृष्ठभूमि

उत्तराखंड में पलायन मुख्यतः ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में देखने को मिलता है। वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद उम्मीद थी कि विकास योजनाओं के माध्यम से पलायन को रोका जा सकेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।


पलायन के प्रमुख कारण

1. रोजगार की कमी

2. शिक्षा और स्वास्थ्य का अभाव

3. बुनियादी ढांचे की कमी

4. प्राकृतिक आपदाएँ

5. सरकारी योजनाओं की असफलता

6. सामाजिक बदलाव


पलायन के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  1. गांवों का खाली होना
    • पर्वतीय गांव धीरे-धीरे “भूतिया गांव” बन रहे हैं।
    • उत्तराखंड के करीब 700 से ज्यादा गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं।
  2. सांस्कृतिक नुकसान
    • लोक कला, संगीत, और पारंपरिक त्योहार विलुप्त होने की कगार पर।
    • सामुदायिक जीवन और आपसी सहयोग की परंपरा कमजोर हो रही है।
  3. आर्थिक असंतुलन
    • खेती की भूमि बंजर हो रही है।
    • शहरी क्षेत्रों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है।
  4. महिलाओं और बुजुर्गों पर प्रभाव
    • पलायन के बाद गांवों में बुजुर्ग और महिलाएं ही रह जाते हैं।
    • खेती और घर के कामकाज का पूरा बोझ महिलाओं पर आ जाता है।

पलायन रोकने के लिए समाधान और नीतियाँ

1. स्थानीय रोजगार सृजन

2. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार

3. बुनियादी ढांचे का विकास

4. सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन

5. कृषि और ग्रामीण विकास

6. युवाओं के लिए अवसर


निष्कर्ष

उत्तराखंड में पलायन एक बहुआयामी समस्या है, जिसे केवल एक पहलू से नहीं सुलझाया जा सकता। इसके लिए शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के समग्र विकास की आवश्यकता है। यदि सरकार और समाज मिलकर ठोस कदम उठाए, तो न केवल पलायन रुकेगा, बल्कि उत्तराखंड के गांव फिर से आबाद हो सकते हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य

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