उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है, प्राकृतिक सौंदर्य, पर्वतों, नदियों, और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय की गोद में स्थित इस राज्य की भौगोलिक संरचना, जलवायु, और पर्यावरणीय दशाएं इसे जैव विविधता का केंद्र बनाती हैं। राज्य के वनों, वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में अद्वितीय वनस्पतियां और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यहां के जैव विविधता और वन्यजीवन का अध्ययन करना भारत के पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड का भूगोल और जैव विविधता
उत्तराखंड का क्षेत्रफल लगभग 53,483 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें हिमालय, शिवालिक और तराई क्षेत्र शामिल हैं। इस विविध भौगोलिक संरचना के कारण यहां विभिन्न प्रकार के वन और पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद हैं। राज्य में निम्न प्रकार के वन पाए जाते हैं:
- उष्णकटिबंधीय वन: तराई और भाबर क्षेत्रों में पाए जाने वाले ये वन साल, शीशम, और खैर जैसे वृक्षों से भरपूर हैं।
- समशीतोष्ण वन: मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ओक, बुरांश और देवदार जैसे वृक्ष मिलते हैं।
- शीतोष्ण वन: उच्च हिमालयी क्षेत्र में बिर्च और जुनिपर जैसे पेड़ पाए जाते हैं।
- अल्पाइन वनस्पति: 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बर्फीले क्षेत्रों में काई, लाइकेन, और घास का प्रचुरता होती है।
उत्तराखंड के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
उत्तराखंड में कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं, जो इसकी जैव विविधता को संरक्षित करते हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क: भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान, यह पार्क बंगाल टाइगर, हाथी, तेंदुआ और घड़ियाल के लिए प्रसिद्ध है। यह पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण है।
- राजाजी नेशनल पार्क: यह पार्क गंगा के तराई क्षेत्र में स्थित है और हाथियों, बाघों और पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है।
- नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व: यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और यहां दुर्लभ वनस्पतियां और जीव-जंतु पाए जाते हैं। स्नो लेपर्ड, भूरे भालू, और कस्तूरी मृग यहां की विशेषताएं हैं।
- वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क: यह उद्यान अपनी अद्वितीय फूलों की प्रजातियों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहां 600 से अधिक प्रजातियों के फूल पाए जाते हैं।
- अस्कोट मस्क डीयर सेंचुरी: यह कस्तूरी मृग के संरक्षण के लिए समर्पित है और पिथौरागढ़ जिले में स्थित है।
वन्यजीवों की प्रजातियां
उत्तराखंड में कई प्रकार के स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप और जलीय जीव पाए जाते हैं। इनमें से कुछ विशेष हैं:
- स्तनधारी: बाघ, कस्तूरी मृग, हिमालयन ब्लू शीप, हिम तेंदुआ, और भालू।
- पक्षी: मोनाल (राज्य पक्षी), हिमालयन गिद्ध, फ्लाइकैचर, और तीतर।
- सरीसृप: घड़ियाल, मगरमच्छ, और कई प्रकार के सांप।
- जलीय जीव: गंगा में डॉल्फिन और महसीर मछली विशेष महत्व रखती हैं।
जैव विविधता को खतरे
उत्तराखंड की समृद्ध जैव विविधता पर कई खतरे मंडरा रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- वनों की कटाई: कृषि, शहरीकरण और अवैध लकड़ी कटाई के कारण वनों का क्षेत्रफल घट रहा है।
- जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि और हिमनदों के पिघलने से वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- पर्यटन का दबाव: अत्यधिक पर्यटन से पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ता है और कचरे की समस्या उत्पन्न होती है।
- शिकार और अवैध व्यापार: कस्तूरी मृग, तेंदुआ और अन्य जीवों का अवैध शिकार जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा है।
संरक्षण प्रयास
उत्तराखंड सरकार और कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैव विविधता संरक्षण के लिए सक्रिय हैं। कुछ प्रमुख प्रयास इस प्रकार हैं:
- राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना: संरक्षित क्षेत्रों की संख्या बढ़ाई जा रही है।
- जैव विविधता बोर्ड: उत्तराखंड राज्य जैव विविधता बोर्ड वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है।
- वृक्षारोपण अभियान: वनीकरण और पुनर्वनीकरण के माध्यम से वनों का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी: वन संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जा रहा है।
- शिक्षा और जागरूकता: स्कूली स्तर से ही पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा दी जा रही है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की जैव विविधता न केवल राज्य बल्कि पूरे भारत के लिए एक अनमोल धरोहर है। इसे संरक्षित करना हम सबकी जिम्मेदारी है। वनों, वन्यजीवों और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाकर ही हम इस समृद्ध धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं। उत्तराखंड का वन्य जीवन न केवल पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखता है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति में भी सहायक है।