उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी…

1. कालू सिंह महरा (1831 )

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

कालू सिंह महरा का जन्म 1831 में उत्तराखंड के चम्पावत जिले के लोहाघाट के समीप थुआमहरा गांव में हुआ था। वे बिसुंग पट्टी के ठाकुर थे, जो वर्तमान में कर्णकरायत के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र लोहाघाट के निकट स्थित है।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, कालू सिंह महरा ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्हें अवध से एक गुप्त पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल होने का निमंत्रण था। इस पत्र में प्रस्ताव था कि अंग्रेजों को हराने के बाद पहाड़ी क्षेत्र स्थानीय लोगों को दिया जाएगा, जबकि तराई क्षेत्र अवध के अधीन रहेगा।

कालू सिंह महरा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और “क्रांतिवीर” नामक एक स्थानीय युवा अभियान की शुरुआत की, जिसे कुमाऊं क्षेत्र में व्यापक समर्थन मिला। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ कई संघर्ष किए, जिनमें लोहाघाट में स्थित अंग्रेजी बैरकों को जलाना शामिल था। इस घटना के बाद, अंग्रेजों ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई की, लेकिन कालू सिंह महरा और उनके साथियों ने बहादुरी से मुकाबला किया।

विरासत:

कालू सिंह महरा को उत्तराखंड के पहले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी के रूप में माना जाता है। उनके सम्मान में, 2009 में देहरादून में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई। हाल ही में, उत्तराखंड डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक विशेष लिफाफा जारी किया है।


2. बिशनी देवी शाह (1902 – 1972)

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

बिशनी देवी शाह का जन्म 12 अक्टूबर 1902 को बागेश्वर, उत्तराखंड में हुआ था। उन्होंने चौथी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की थी। 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ, लेकिन 16 वर्ष की आयु में वे विधवा हो गईं, जिसके बाद उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

बिशनी देवी शाह उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की। वे अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर में स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित सभाओं में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें फूल भेंट किए और उनकी आरती उतारी। इसके अलावा, उन्होंने गुप्त रूप से धन एकत्रित कर जेल गए सेनानियों के परिवारों की सहायता की।

25 मई 1930 को, अल्मोड़ा नगर पालिका में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के निर्णय के दौरान, उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर ध्वज फहराया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल में रखा गया। जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने खादी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महिलाओं को चरखा चलाना सिखाया।

विरासत:

2021 में, डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक विशेष लिफाफा जारी किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी अपने एक संबोधन में बिशनी देवी शाह के योगदान का उल्लेख किया।


3. गोविंद बल्लभ पंत (1887 – 1961)

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और एक सफल वकील बने।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

गोविंद बल्लभ पंत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ावा दिया और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का समर्थन किया। 1930 के नमक सत्याग्रह में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

स्वतंत्रता के बाद:

स्वतंत्रता के बाद, गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने और बाद में भारत के गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विरासत:

उनके सम्मान में, पंतनगर विश्वविद्यालय और गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल जैसे संस्थानों का नामकरण किया गया है। उन्हें 1957 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।


4. बद्री दत्त पांडे (1882 – 1965)

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

बद्री दत्त पांडे का जन्म 15 फरवरी 1882 को अल्मोड़ा जिले में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध पत्रकार, इतिहासकार और स्वतंत्रता सेनानी थे।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

बद्री दत्त पांडे ने “अल्मोड़ा अखबार” की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप इस प्रथा को समाप्त किया गया।

विरासत:

उन्हें “कुमाऊं केसरी” की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी पुस्तक “कुमाऊं का इतिहास” कुमाऊं क्षेत्र के इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।


5. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (1891 – 1979)

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 को पौड़ी गढ़वाल जिले के रौणसेरा गांव में हुआ था। वे गढ़वाल राइफल्स में सिपाही के रूप में भर्ती हुए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

1930 में, पेशावर में, उन्होंने अपने सैनिकों को निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से मना किया

6. हरगोविंद पंत (1885 – 1957)

जन्म और प्रारंभिक जीवन
हरगोविंद पंत का जन्म नैनीताल में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित वकील और समाज सुधारक थे।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

  • हरगोविंद पंत ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दिया।
  • उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में स्वतंत्रता की भावना का प्रसार किया।
  • उन्होंने “कुली-बेगार प्रथा” के खिलाफ आवाज उठाई और उसे समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई।

विरासत
हरगोविंद पंत ने शिक्षा और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में भी काम किया। उनके नाम पर कई विद्यालय और स्मारक हैं।

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