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“उत्तराखंड की पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियाँ: एक पुनरावलोकन और आधुनिक जल संकट में उनका प्रासंगिकता”

जल मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है। पर्वतीय क्षेत्रों में जलस्रोतों की उपलब्धता, संरक्षण और समुचित उपयोग सदियों से एक चुनौती रही है। उत्तराखंड, हिमालय की गोद में बसा राज्य, जहां नदियाँ, झीलें और प्राकृतिक जलधाराएँ प्रचुर मात्रा में हैं — वहीं इनका संतुलित उपयोग भी एक अनोखी कला रही है। यहाँ की पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियाँ जैसे नौला, धारा, गूल, खाल और पैण, इन पहाड़ी समाजों की जल-नीति और पर्यावरणीय समझ का प्रतिबिंब हैं।

परंतु आज के बदलते समय में इन प्रणालियों की अनदेखी के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में इन पारंपरिक प्रणालियों का पुनर्पाठ और मूल्यांकन समय की आवश्यकता बन गया है।


2. पारंपरिक जल संरचनाओं का परिचय

उत्तराखंड की पारंपरिक जल संरचनाएँ मुख्यतः निम्न प्रकार की रही हैं:

(i) नौला

छोटे-छोटे पत्थरों से बनी भूमिगत जलस्रोत संरचना जो वर्षाजल या भूमिगत जल को संग्रहीत करती है। ये संरचनाएँ आमतौर पर गाँव के बीच या मंदिरों के पास होती थीं।

(ii) धारा

प्राकृतिक झरनों से निकलने वाला जल जो खुले स्थानों पर पत्थर या सीमेंट से बनाए गए छोटे कुंडों में एकत्र होता था।

(iii) गूल

कृत्रिम रूप से बनाई गई छोटी नहरें जो नदियों/झरनों से खेतों तक पानी लाने के लिए उपयोग की जाती थीं।

(iv) पैण और खाल

छोटे जलाशय या तालाब जो वर्षाजल को संचित करते हैं। ये संरचनाएँ जल रिचार्ज के लिए महत्वपूर्ण थीं।


3. इन प्रणालियों की सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका


4. पारंपरिक प्रणालियों की वैज्ञानिकता और स्थायित्व


5. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गिरावट के कारण


6. आधुनिक जल संकट और पारंपरिक प्रणाली की प्रासंगिकता


7. संरक्षण और पुनरुद्धार के प्रयास

(i) सरकारी योजनाएँ:

(ii) NGO और स्थानीय पहल:

(iii) नवाचार और एकीकरण:


8. चुनौतियाँ और सुझाव

चुनौतियाँसम्भावित समाधान
ग्रामीणों में जागरूकता की कमीजल साक्षरता अभियान
वित्तीय संसाधनों की कमीCSR, NGO भागीदारी
प्रशासनिक उदासीनताजल नीति में स्पष्ट दिशा
युवाओं की भागीदारी नहींस्कूल-कॉलेज स्तर पर पाठ्यक्रम में समावेश

उत्तराखंड की पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियाँ केवल जल संरक्षण की तकनीक नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली थीं जो समाज, पर्यावरण और आध्यात्मिकता को एक सूत्र में पिरोती थीं। आज, जब हम जल संकट की गंभीरता से जूझ रहे हैं, तो इन प्रणालियों से सीख लेना और उन्हें आधुनिक संदर्भ में पुनर्जीवित करना न केवल उत्तराखंड के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा हो सकती है।

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