उत्तराखंड को केवल देवभूमि नहीं, बल्कि वीरभूमि भी कहा जाता है। यहां की वादियों में जहाँ आध्यात्मिकता बसती है, वहीं इन पहाड़ों ने ऐसे वीर सैनिकों को जन्म दिया है जिन्होंने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है। हर परिवार में कोई न कोई भारतीय सेना, ITBP, BSF या अन्य सैन्य बलों में सेवा देता है। उत्तराखंड के सैनिकों की त्याग, शौर्य और बलिदान की कहानियाँ हर भारतीय के दिल में गर्व भर देती हैं।
उत्तराखंड की सैन्य परंपरा
- उत्तराखंड में गढ़वाल राइफल्स, कुमाऊँ रेजीमेंट और सिख रेजीमेंट में सबसे ज़्यादा जवान भर्ती होते हैं।
- यहाँ की कठोर भौगोलिक परिस्थितियाँ युवाओं को मजबूत, साहसी और आत्मनिर्भर बनाती हैं।
- गांवों में ‘फौज में जाना’ एक परंपरा की तरह देखा जाता है – यह न केवल नौकरी का साधन है बल्कि सम्मान और सेवा का प्रतीक भी।
प्रमुख वीर सैनिक और उनकी गाथाएँ
1. राइफलमैन जसवंत सिंह रावत (PVC – मरणोपरांत)
- कुमाऊँ रेजीमेंट, 1962 के भारत-चीन युद्ध में नूरारंग (अरुणाचल प्रदेश) में अद्वितीय वीरता दिखाई।
- अकेले 72 घंटे तक दुश्मन की टुकड़ी से लड़ते रहे।
- उनकी शहादत के बाद भी, आज भी उनके नाम से ड्यूटी लगाई जाती है। उन्हें ‘अमर जवान’ माना जाता है।
2. कैप्टन विक्रम बत्रा (PVC – मरणोपरांत)
- जन्म पालमपुर, हिमाचल में हुआ लेकिन उनका परिवार मूल रूप से उत्तराखंड के रानीखेत से है।
- कारगिल युद्ध (1999) में ‘ये दिल मांगे मोर‘ का नारा देशभर में प्रसिद्ध हुआ।
- उनके साहस और रणनीति ने उन्हें भारत का हीरो बना दिया।
3. कैप्टन मनोज पांडे (PVC – मरणोपरांत)
- मूलतः सतपुली (पौड़ी) के निवासी थे।
- कारगिल युद्ध में बंकरों पर हमला करते हुए शहीद हुए।
- “अगर मौत भी आती है तो उससे डरकर पीछे नहीं हटूँगा” – ये उनका आत्मविश्वास था।
4. लेफ्टिनेंट जनरल बी. एस. रावत (पूर्व CDS)
- उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से थे।
- भारत के पहले Chief of Defence Staff (CDS) बने।
- 2021 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद हुए, लेकिन उनकी रणनीतिक सोच और सेवा अमर है।
5. मेजर अनूप मिश्रा
- उत्तराखंड के रहने वाले मेजर अनूप को बुलेटप्रूफ जैकेट की नई तकनीक बनाने में सफलता मिली है।
- उन्हें ARMY DESIGN BUREAU EXCELLENCE AWARD से नवाज़ा गया।
उत्तराखंड से सेना में योगदान (संख्या में)
- हर वर्ष उत्तराखंड से हजारों युवा सेना, BSF, ITBP, CISF, और SSB में भर्ती होते हैं।
- गढ़वाल और कुमाऊं रेजीमेंट की लगभग 60% फोर्स उत्तराखंड से होती है।
- राज्य में ऐसे कई गाँव हैं जिन्हें ‘फौजी गाँव’ कहा जाता है (जैसे – रानीखेत, लैंसडाउन, पिथौरागढ़ के कई गांव)।
सम्मान और प्रेरणा
- राज्य सरकार द्वारा शहीदों के परिवारों को सहायता राशि और सरकारी नौकरी की व्यवस्था दी जाती है।
- कई विद्यालय, चौक, सड़कों के नाम वीर सैनिकों के नाम पर रखे गए हैं।
- युवाओं को फौज में जाने के लिए पूर्व सैनिक प्रेरित करते हैं और गाँवों में प्रशिक्षण भी देते हैं।
उत्तराखंड के वीर सैनिकों की कहानियाँ केवल इतिहास नहीं, बल्कि देशभक्ति की प्रेरणा हैं। जब भी देश की सीमाओं पर खतरा मंडराया, उत्तराखंड के जवान ढाल बनकर खड़े हुए। आज भी हजारों युवा अपने पर्वतीय गाँवों से निकलकर भारत माता की सेवा में जुटे हैं।
हमें अपने इन वीर सपूतों की गाथा को याद रखना, सम्भालना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।