सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, व्यावहारिक ज्ञान भी जरूरी है….

“पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे हो जाओगे खराब” – यह पुरानी कहावत लंबे समय तक भारतीय समाज में शिक्षा का पर्याय बनी रही। लेकिन समय के साथ यह सोच बदल गई है। आज का युग सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन में सफल होने के लिए किताबी ज्ञान (theoretical knowledge) के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान (practical knowledge) भी जरूरी हो गया है।

शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाना नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देना और समाज के लिए उपयोगी नागरिक बनाना है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हम अपने विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान देकर उन्हें जीवन के लिए तैयार कर पा रहे हैं?


किताबी ज्ञान क्या है?

किताबी ज्ञान वह ज्ञान है जो हम पुस्तकों, कक्षा, अध्यापक या पाठ्यक्रम से प्राप्त करते हैं। यह ज्ञान सैद्धांतिक होता है – जैसे विज्ञान के नियम, गणित के सूत्र, इतिहास की घटनाएँ या भाषा की व्याकरण।

इसके कुछ लाभ:

  • मजबूत बुनियाद और समझ (foundation knowledge)
  • प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक
  • विषयों की गहराई से जानकारी

लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:

  • यह आचरण में परिवर्तन नहीं लाता जब तक उसे व्यवहार में न उतारा जाए।
  • सिर्फ रटने से समझ का विकास नहीं होता।
  • जीवन की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं मिलता।

व्यावहारिक ज्ञान क्या है?

व्यावहारिक ज्ञान वह ज्ञान है जिसे हम अनुभव, प्रयोग और अभ्यास के माध्यम से प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए:

  • विज्ञान की प्रयोगशाला में रासायनिक अभिक्रियाएं करना
  • किसी कंपनी में इंटर्नशिप के दौरान काम सीखना
  • जीवन के छोटे-छोटे फैसले लेना
  • स्वयं गलती करके सीखना

व्यावहारिक ज्ञान हमें न केवल आत्मनिर्भर बनाता है बल्कि समस्या समाधान (problem solving), नेतृत्व, निर्णय क्षमता और रचनात्मकता जैसे कौशल भी विकसित करता है।


शिक्षा का उद्देश्य: समझ बनाम अंक

आज की शिक्षा प्रणाली में अधिकतर विद्यालय और छात्र अंक (marks) पर ध्यान देते हैं, समझ (understanding) पर नहीं। स्कूल-कॉलेज में बच्चों को परीक्षा के लिए पढ़ाया जाता है, जीवन के लिए नहीं।

इसका परिणाम क्या है?

  • छात्र उत्तर याद करके परीक्षा पास तो कर लेते हैं, परंतु उन्हें यह नहीं पता होता कि वह जानकारी जीवन में कैसे काम आएगी।
  • कई बार अच्छे अंक लाने वाले छात्र भी साक्षात्कार में असफल हो जाते हैं क्योंकि उनमें व्यावहारिक सोच या आत्मविश्वास की कमी होती है।

किताबी और व्यावहारिक ज्ञान के बीच संतुलन क्यों जरूरी है?

1. ज्ञान का अनुप्रयोग जरूरी है

सिर्फ यह जानना कि “नीम में औषधीय गुण होते हैं” काफी नहीं है, बल्कि यह जानना जरूरी है कि इसका इस्तेमाल कैसे और कब किया जाए।

2. 21वीं सदी की नौकरियाँ और स्किल्स

आज की कंपनियाँ डिग्री से ज्यादा कौशल (skills) को महत्व देती हैं। जैसे:

  • टीम वर्क
  • प्रेजेंटेशन देना
  • समय प्रबंधन
  • डिजिटल टूल्स की जानकारी

ये सब व्यावहारिक ज्ञान से ही आता है।

3. समस्याओं का समाधान

व्यावहारिक ज्ञान से ही हम जीवन में आने वाली अनिश्चितताओं और चुनौतियों का सामना करना सीखते हैं। जैसे – अचानक बिजली चली जाए तो कौन से उपाय करें? या नौकरी में तनाव हो तो कैसे संभालें?


कुछ उदाहरण

● अब्दुल कलाम:

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक वैज्ञानिक थे। उन्होंने केवल किताबों से नहीं सीखा, बल्कि प्रयोगशालाओं में दिन-रात मेहनत करके विज्ञान को समझा और भारत को मिसाइल तकनीक में आगे बढ़ाया।

● मैकेनिक और इंजीनियर:

एक इंजीनियर मशीनों का पूरा सिद्धांत जानता है, लेकिन कई बार एक साधारण मैकेनिक, बिना डिग्री के ही मशीन को बेहतर तरीके से ठीक कर देता है – क्योंकि उसके पास व्यावहारिक ज्ञान होता है।


शिक्षा प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता

आज जरूरत है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान दोनों को समान महत्व दिया जाए। इसके लिए:

✅ प्रैक्टिकल क्लासेस को अनिवार्य बनाना

✅ विद्यार्थियों को फील्ड वर्क, इंटर्नशिप, लाइव प्रोजेक्ट्स से जोड़ना

✅ स्कूली पाठ्यक्रम में कौशल आधारित शिक्षा (Skill-based education) को शामिल करना

✅ परीक्षा प्रणाली को परिणाम आधारित न बनाकर प्रक्रिया आधारित बनाना


विद्यार्थियों के लिए सुझाव

  • केवल किताबों पर निर्भर न रहें, कोशिश करें कि जो भी पढ़ें, उसका व्यवहारिक पक्ष भी समझें।
  • नई चीजें सीखने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, यूट्यूब, प्रोजेक्ट, या DIY मॉडल्स का इस्तेमाल करें।
  • पार्ट टाइम जॉब्स या इंटर्नशिप से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
  • जीवन में गलतियाँ करने से न डरें – यही व्यावहारिक ज्ञान का आधार है।

माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका

  • माता-पिता बच्चों को केवल नंबर लाने के लिए न कहें, बल्कि सीखने के प्रति उत्सुक बनाएं।
  • शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें सोचने और प्रयोग करने के लिए भी प्रेरित करें।

आज का युग प्रतिस्पर्धा का है और केवल किताबी ज्ञान से जीवन की चुनौतियों को पार पाना कठिन हो गया है। एक सफल और आत्मनिर्भर व्यक्ति बनने के लिए जरूरी है कि हम ज्ञान का केवल संग्रह नहीं, बल्कि उसका प्रयोग करना भी सीखें।

सच्ची शिक्षा वही है जो हमें सोचने, समझने, करने और नया रचने के लिए प्रेरित करे। इसीलिए कहा गया है:

“शिक्षा वह है जो स्कूल खत्म होने के बाद भी हमारे साथ रहती है।” – अल्बर्ट आइंस्टीन

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