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उत्तराखंड की लुप्त हो चुकी जनजातियाँ और उनके विलुप्त होने के पीछे के रहस्य…

उत्तराखंड पहाड़ों की गोद में बसी उन असंख्य जनजातियों का घर भी रहा है जिन्होंने यहाँ की संस्कृति, बोली और परंपराओं को जन्म दिया। आज इनमें से कुछ जनजातियाँ इतिहास के पन्नों में सिमट गई हैं। आखिर ये जनजातियाँ कौन थीं? ये लुप्त क्यों हुईं? क्या इनके पीछे कोई रहस्य छुपा है? आइए इस रोचक खोज की शुरुआत करें।

उत्तराखंड की प्रमुख लुप्त हो चुकी जनजातियाँ:

1. कुलिंद जनजाति:

2. किरात (या किराति):

3. रौतेला / राउत जनजाति:


विलुप्ति के प्रमुख कारण:

1. राजनीतिक आक्रमण और विलय:

2. धार्मिक समायोजन:

3. भाषाई और सांस्कृतिक विलयन:

4. आधुनिक विकास और विस्थापन:


रहस्य और रोचक तथ्य:

1. लुप्त जनजातियों की देवी-पूजा परंपरा:

2. वंशानुक्रम और डीएनए अध्ययन:

3. स्थानीय लोकगाथाओं में जीवित स्मृति:


समाधान और संरक्षण की आवश्यकता:

  1. एथनोग्राफिक अध्ययन:
    इन जनजातियों के शेष तत्वों को वैज्ञानिक व सांस्कृतिक रूप से दर्ज करना ज़रूरी है।
  2. स्थानीय संग्रहालयों और अभिलेखागारों की स्थापना:
    इन जनजातियों की वस्तुएँ, चित्र, पूजा-पद्धति आदि का संरक्षण जरूरी है।
  3. लोककथाओं का संकलन:
    पहाड़ी लोकगीतों और कहानियों में इन जनजातियों की परछाईं आज भी जीवित है – उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए।
  4. नयी पीढ़ी में जागरूकता:
    स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में इन जनजातियों को शामिल कर उनकी स्मृति को पुनर्जीवित किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

उत्तराखंड की ये जनजातियाँ भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनके पदचिन्ह अब भी संस्कृति, रीति-रिवाज़ों और लोककथाओं में जीवित हैं। इनके लुप्त होने की कहानी केवल इतिहास नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – कि अगर हमने अपने अतीत को नहीं संजोया, तो आने वाली पीढ़ियाँ केवल नाम जानेंगी, पहचान नहीं।


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