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“देश की तरक्की सरकार नहीं, नागरिक तय करते हैं”

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहाँ हर नागरिक को बोलने, सोचने और जीने की आज़ादी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सच में “स्वतंत्र” हैं? स्वतंत्रता सिर्फ अधिकारों से नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों से भी आती है। और अफसोस की बात यह है कि देश के अधिकतर नागरिक अपने “Civic Sense” (नागरिक समझ) को भूल चुके हैं।

1. नागरिक समझ क्या है?

नागरिक समझ का मतलब है – समाज और देश के प्रति वह व्यवहार जो एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें करना चाहिए।

इसमें शामिल है —

साधारण शब्दों में कहें तो नागरिक समझ वही है, जो हमें “अच्छा इंसान” और “बेहतर नागरिक” बनाती है।

2. हमारी सबसे बड़ी कमी — ‘मेरा क्या जाता है?’

भारत में सबसे आम सोच है – “मेरा क्या जाता है?” यही सोच हर जगह दिखाई देती है।
कचरा सड़क पर फेंक देना, ट्रैफिक सिग्नल तोड़ना, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाना, लाइन में घुस जाना — ये सब छोटी लगने वाली बातें हैं, लेकिन इनसे देश की छवि और व्यवस्था दोनों प्रभावित होती हैं।
सच कहें तो देश गंदा नहीं है, हमारी सोच गंदी है।

3. अधिकारों की बात सब करते हैं, कर्तव्यों की कोई नहीं

हर नागरिक अपने अधिकार जानता है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 51A में बताए गए नागरिक कर्तव्यों को शायद ही कोई याद रखता है।

4. जिम्मेदारी सिर्फ वोट देने की नहीं

देश के प्रति जिम्मेदारी केवल वोट डालने तक सीमित नहीं है। यह हर दिन निभाई जाने वाली भावना है।
जब कोई सड़क पर कचरा न डाले, जब कोई किसी बुजुर्ग को सीट दे, जब कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए — वही सच्चा नागरिक है।
देश का विकास केवल सरकार नहीं करती, जनता के संस्कार भी उसका आधार होते हैं।

5. अब बदलाव हमें ही लाना होगा

अगर हर भारतीय यह तय कर ले कि “मैं बदलूंगा तो देश बदलेगा”, तो किसी कानून, किसी नारे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
हर छोटा काम – जैसे पानी बचाना, बिजली बचाना, सड़क पर ट्रैफिक नियम मानना, या ऑनलाइन गलत जानकारी न फैलाना – यही असली देशभक्ति है।

भारत की ताकत उसकी सेना या अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की समझ है।
देश को महान बनाने के लिए सिर्फ “जय हिंद” कहना काफी नहीं —
बल्कि “मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ” यह समझना और निभाना ही सच्ची देशभक्ति है।

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