उत्तराखंड सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता, मंदिरों और पर्यटन के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यहाँ के कुछ गाँव ऐसे भी हैं जो अपने काम, सोच और एकजुटता से पूरे देश के लिए मिसाल बन गए हैं।
इन गाँवों ने यह साबित किया है कि अगर इच्छा शक्ति और सामूहिक प्रयास हो, तो पहाड़ों की ऊँचाइयाँ भी विकास की राह में रुकावट नहीं बनतीं।
1. रैणी गाँव (चमोली जिला) – चिपको आंदोलन की जन्मस्थली
रैणी गाँव का नाम भारत के पर्यावरण इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
यहीं से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी जब गौरा देवी और गाँव की महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर जंगल कटाई का विरोध किया था।
आज रैणी गाँव पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है।
खासियत:
- पर्यावरण जागरूकता की मिसाल
- महिला नेतृत्व का उदाहरण
- गाँव में पौधारोपण और जंगल संरक्षण अभियान आज भी जारी है
2. माणा गाँव (चमोली जिला) – भारत का आख़िरी गाँव
भारत-चीन सीमा के पास स्थित माणा गाँव न सिर्फ भौगोलिक रूप से अनोखा है बल्कि यहाँ के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को आज भी सहेजकर रखते हैं।
यहाँ के निवासी बुनाई, ऊनी कपड़े और हस्तशिल्प बनाकर आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं।
खासियत:
- पारंपरिक संस्कृति की रक्षा
- पर्यटन से आत्मनिर्भरता
- “भारत का आख़िरी गाँव” होने का गौरव
3. टिमली गाँव (पौड़ी गढ़वाल) – शिक्षा की मिसाल
टिमली गाँव ने शिक्षा के क्षेत्र में जो काम किया है, वो काबिले तारीफ है।
यहाँ के लोग गाँव छोड़ने के बजाय शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने में जुट गए हैं।
यहाँ का स्कूल अब पूरे जिले में आदर्श विद्यालय बन चुका है।
खासियत:
- सामूहिक प्रयास से शिक्षा में सुधार
- बच्चों की पढ़ाई और डिजिटल लर्निंग पर जोर
- पलायन रोकने में सफलता
4. बैनोली गाँव (पिथौरागढ़) – जैविक खेती की नई दिशा
बैनोली गाँव के किसानों ने रासायनिक खेती छोड़कर ऑर्गेनिक खेती अपनाई।
अब यहाँ का अनाज, फल और सब्जियाँ आस-पास के शहरों तक पहुँचाई जाती हैं।
इससे गाँव की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार आया है।
खासियत:
- 100% ऑर्गेनिक खेती
- किसानों की आमदनी में वृद्धि
- युवाओं की खेती में वापसी
5. खाती गाँव (बागेश्वर जिला) – पर्यटन और पर्यावरण का संतुलन
पिंडारी ग्लेशियर के रास्ते पर स्थित यह गाँव पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है।
यहाँ के लोग प्रकृति के साथ तालमेल रखकर इको-टूरिज़्म को बढ़ावा दे रहे हैं।
गाँव वालों ने मिलकर प्लास्टिक मुक्त अभियान चलाया और स्वच्छता को अपनी पहचान बना लिया है।
खासियत:
- पर्यावरण संरक्षण
- स्थानीय संस्कृति को जीवित रखना
- पर्यटकों के लिए होमस्टे सुविधा
उत्तराखंड के ये गाँव दिखाते हैं कि असली विकास सिर्फ शहरों में नहीं होता —
जहाँ लोग मिलकर सोचते और काम करते हैं, वहाँ पहाड़ भी झुक जाते हैं।
इन गाँवों की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है कि आत्मनिर्भरता, शिक्षा, और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी ही असली प्रगति का रास्ता है।
