उत्तराखंड का ऐतिहासिक काल
कुणिन्द शासको का शासन उत्तराखंड में तीसरी चौथी ई. तक रहा यह मध्य हिमालय का प्रथम एतिहासिक वंश था .
अशोक कालीन शिलालेख में क्षेत्र को उपरांत व क्षेत्र के लोगों को पुलिंद कहा गया।
कुणिन्द वंश की प्रारंभिक राजधानी श्रीनगर थी। मध्यकालीन राजधानी कालकूट( कालसी) व उत्तर काल में शत्रुघ्न नगर ( वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर) में थी।
कुणिन्द वंश का सबसे शक्तिशाली राजा अमोद्यभूति था
कुणिन्द राजवंश की 3 प्रकार की मुद्राएं प्राप्त हुई(अल्मोड़ा , अमोघभूती व छत्रेश्वर प्रकार की )
अमोद्यभूति मुद्राएं – इस वंश का सबसे प्रतापी राजा अमोद्यभूति था।
कालसी अभिलेख में पुलिंद शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है कुणिन्द संभवत: मौर्यो के अधीन थे ।
अमोद्यभूति का साम्राज्य विस्तार था- हिमाचल प्रदेश , गढ़वाल, कुमाऊं के साथ-साथ अंबाला और सहारनपुर तक फैला हुआ था। कुणिन्द शासन में बौद्ध व शिव धर्म प्रचलित थे ।
इस काल में नाग पूजा व प्रकृति पूजा मुख्य थी । अमोद्यभूति की ताम्र व रजत मुद्राएं पश्चिम में व्यास से लेकर अलकनंदा तक तथा दक्षिण में सुनेत तथा बेहत तक प्राप्त हुई.
इन मुद्राओं में देवी तथा मृग का अंकन तथा ब्राह्मी लिपि में राजा कुणिन्दस अमोद्यभूति महरजस अंकित है।
कुणिन्द राजवंश- विसदेव – अग्रराज- धन भूति- धनभूति द्वितीय-अमोद्यभूति– छत्रेश्वर आदि।
मौर्य वंश के पतन की बाद सत्ता विकेंद्रीकरण का उत्तराखंड पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
मौर्य साम्राज्य के पश्चात कुषाणो ने कुणिन्दों के मैदानी भागो को अपने अधीन कर लिया।
कुषाणेत्तर वंश ( जब कुषाणो का अंत हो गया) उसके बाद-योधेय वंश – परिवर्ती कुणिन्द वंश-वर्षागण्य वंश( शीलवर्मन)
गुप्त काल (3 से 5 वी शताब्दी) तक हिमालय की राजनीतिक स्थिति अस्पष्ट थी । ( यादव, नाग शासन) का शासन था ।
गुप्त काल में कालसी आदि क्षेत्रों पर यादव शाखा का पता चलता है ।
लाखामंडल प्रशस्ति मे यादव वंश की 11 पीड़ी के 12 शासकों का नाम उल्लेखित है।
इनमें यमुना प्रदेश के यादवों की राजधानी सिंहपूर बताई गई है।
छठवीं शताब्दी में कन्नौज के मोखरीयों ने पर्वतीय राज्य पर अधिकार किया। ( नागवंश का पातन )
नागवंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा गणपति नाग था ।
अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं-
यह उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं। प्रमुख विदेशी टॉलमी ने कुणिन्दों के बारे में अपने लेख में लिखा है वह इन्हें कुणिन्दस्य कहा।
शकों का शासन-
शकों ने कुणिन्दों को पराजित कर इनके मैदानी क्षेत्रो पर अधिकार किया। कुमाऊं में सूर्य मंदिर व सूर्य मूर्तिया शकों के अधिकार की पुष्टि कराती है। इनमें अल्मोड़ा में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
कुषाण –
शकों के बाद कुषाणो ने राज्य के तराई क्षेत्रों पर अधिकार किया।
प्रमुख कुषाण कालीन अवशेष- वीरभद्र( ऋषिकेश), मोरध्वज( कोटद्वार), गोविषाण ( काशीपुर)
कांति प्रसाद नौटियाल ने अपनी पुस्तक, आर्कोलॉजी ऑफ कुमाऊं में गोविषण का उल्लेख करते हुए लिखा है। गोविषण ( काशीपुर) कुषाणों का प्रमुख नगर था।
योधेय – योधेय कुंणिन्द राजवंश के समकालीन थे।
योधेय शासकों की मुद्राएं जौनसार- बाबर( देहरादून) तथा कालो- डांडा( पौड़ी) से मिले
बाड़वाला यज्ञ वेदिका का निर्माण शीलवर्मन ने कराया बाड़ावाला विकासनगर( देहरादून) के समीप पर स्थित है।
शीलवर्मन ने अश्वमेघ यज्ञ के दौरान बाड़ावाला यज्ञ वेदिका का निर्माण कराया।
कुछ इतिहासकार शीलवर्मन को कुणिन्द वह कुछ योधेय राजवंश काम मानते हैं।
छठी शताब्दी के तीसरे दशक में मौखरी वंश के शासक हर्षवर्धन का पर्वतीय राज्य पर आधिपत्य के प्रमाण मिलते है साथ ही हर्षवर्धन का पर्वतीय राजकुमारी से विवाह का उल्लेख भी मिलता है.
हर्ष के काल में ही चीनी यात्री व्हेनसांग ने भारत यात्रा की और साथ ही वह उत्तराखंड के ब्रह्मपुर राज्य में भी आया था. हरिद्वार के बारे में व्हेनसांग ने लिखा है की – भागीरथी नदी के तट पर बसा हरिद्वार नामक नगर है जिसकी माप 20 ली है.व्हेनसांग ने उत्तराखंड का जिक्र ब्रह्मपुर नाम से किया जबकि हरिद्वार को मो -यू-लो (मयुरपुर ) नाम से संबोधित किया था .
हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तराखंड में बहुअराजकता का युग शुरू हो गया था यानी छोटे छोटे कई राज्य स्थापित हो गये थे जिनमे ब्रह्मपुर ,शत्रुघ्न ,गोविशान प्रमुख थे . छठी शताब्दी के अंतिम दशकों में ब्रह्मपुर में पौरवो का शासन रहा तथा इस वंश के प्रमुख शासक विष्णुवर्मन ,वृश्वर्मन ,अग्निवर्मन ,द्युतिवर्मन और विष्णुवर्मन द्वितीय का नाम उल्लेखनीय है.
700 ई. में उत्तराखंड में कार्तिकेयपुर या कत्युरी राजवंश की स्थापना हुई जिसका अध्ययन हम ऐतिहासिक काल के अगले अंक यानी भाग 02 में करेंगे .