उत्तराखण्ड लोकनृत्य

                उत्तराखण्ड लोकनृत्य 

उत्तराखण्ड राज्य अपने आप में विभिन्न संस्कृतियों को अपने आप में संयोए हुए बैठा है। इन्हीं संस्कृतियों की एक झलक हमको उत्तराखण्ड के लोनृत्यों में भी देखने को मिलती है। 
उत्तराखण्ड के लोकनृत्यों को हम मुख्यतः तीन प्रधान भागों में बांट सकते हैं, जो निम्नवत हैं - 
  1. धार्मिक नृत्य
  2. व्यवसायिक नृत्य
  3. सामूहिक नृत्य
    इन नृत्यां की अलग-अलग विशेषतायें हैं, जो कि अलग-अलग अवसरों पर किये जाते हैं। इन नृत्यों का विस्तृत अध्ययन निम्नवत् हैं। चौंफला/चौंफुला/चमफूरी नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख नृत्य जिसमें एक साथा टोली बनाकर नृत्य किया जाता है।
 यह श्रृंगारिक व प्रसन्नता आधारित नृत्य है।
 श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य/प्रणय लोकनृत्य
 पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गढ़वाल के पर्वत पर चौरी/चौपाल बनाकर अपनी सहेलियों के साथ नृत्य किया था।
 असम के बिहू, गुजरात के गरबा तथा मणिपुर के रास नृत्य के समतुल्य माना जाता है।
 किसी भी प्रकार के वाद्य यंत्र का प्रयोग नही किया जाता है, बल्कि हाथों की ताली, पैरों की थाप, झांझ की झंकार, कंगन व पाजेब की सुमधुर है।
 पुरूष नृतकों को – चौंफला तथा महिला नृत्यकों को चौंफलों कहते हैं।
 चौफला नृत्य की प्रमुख शैलियां – खड़ा चौंफला, लालुडी चौंफला, मयूर चौंफला आदि।

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तांदि नृत्य


 गढ़वाल के उत्तरकाशी तथा टिहरी में किसी विशेष खुशी पर ’माघ‘ महीने में किया जाता है।
 इस नृत्य में गाया जाने वाला गीत तात्कालिक घटनाओं, प्रसिद्ध व्यक्तियों के कार्यों पर निहित होता है।

थड़िया नृत्य


 थड़ का अर्थ होता है – आंगन अर्थात् यह नृत्य सामूहिक रूप से आंगन में सम्पन्न होता है।
 यह नृत्य विशेषतः गढ़वाल क्षेत्र में किया जाता है।
 मध्यकालीन गीतनृत्य या विनोद नृत्य का रूपांतर है।
 गढ़वाल में यह लास्य शैली का सबसे सुंदर नृत्यगीत है।
 स्वरूप -ः चैत्र माह में बसंत पंचमी से बिखौत (विषुवत संक्राति) तक, विवाहित महिलाओं द्वारा प्रथम बार मायके जाने पर घर के आंगन में किया जाने वाला नृत्य।
 जब लोग कृषि कार्य/पशुव्यापार या अन्य किसी श्रमबल के कार्य से मुक्त होते हैं तो सामूहिक रूप से थड्या करते हैं।

झुमेलो नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र में झूम-झूम कर किया जाने वाला नृत्य।
 विवाहित महिलाओं द्वारा प्रथम बार मायके आने पर किया जाने वाला नृत्य।
 विवाहित महिलाओं का मायके की याद में किया जाने वाला भाव प्रधान गीत।
 यह नृत्य मायके की पृष्ठभूमि तथा ससुराल के पृष्ठभूमि पर आधारित है।
 यह बसंत पंचमी से विषुवत संक्रांति तक आयोजित होता है।
 यह संस्कृत के ’जग्भालिका‘ की श्रेणी का नृत्य है।

छोलिया नृत्य


 कुमाऊं क्षेत्र के पिथौरागढ़, सोर घाटी व अस्कोट क्षेत्र में अधिक प्रसिद्ध।
 गढ़वाल के सरौं नृत्य के समान।
 पौंणा नृत्य के समान।
 यह युद्ध विजय प्राप्ति के पश्चात् उल्लास व्यक्त करने वाला नृत्य है।
 इस नृत्य को शादी/धार्मिक आयोजन/किर्जी कुंभ में ढ़ोल दमाऊं की ताल पर हाथ में तलवार लिए रंग बिरंगे कपड़े पहनकर किया जाता है।
 छोलिया नृत्य कुमाऊं की शौका जनजाति में प्रसिद्ध है।
 नागजा (नागराजा), नरसिंह तथा पांडव लीलाओं पर आधारित नृत्य है।
 गढ़वाल के सरौं नृत्य के समान कुमाऊं में किया जाने वाला नृत्य है।

चांचरी नृत्य


 कुमाऊं तथा गढ़वाल क्षेत्र में बसंत ऋतु की चांदनी में (माघ माह में) स्त्री पुरूषों द्वारा किया जाने वाला सांस्कृतिक नृत्य।
 कुमाऊं क्षेत्र में इस नृत्य को झोड़ा तथा गढ़वाल में चांचरी कहा जाता है।
 गायक वृत्त के बीच में हुड़की बजाते हुए गायन करता है।
 यह एक श्रृंगारिक नृत्य/प्रेमप्रधान नृत्य है।

मण्डाव/मण्डोण/केदारनृत्य

 टिहरी, उत्तरकाशी, जौनपुर क्षेत्र में देवी देवता पूजन, देव जात, शादी-ब्याह के मौकों पर इस नृत्य का आयोजन किया जाता है।
 4 तालों में किया जाने वाला नृत्य इसमें शरीर के सभी अंगों का इस्तेमाल होता है।
 इस नृत्य में एकाग्रता प्रमुख होती है।
 नृत्य का अंत ’चाली‘ या ’भौंर‘ से होता है।
 ढोल-सागर की तालों पर आयोजित नृत्य है।

घरत्मियों नृत्य

 कुमाऊं में भोटिया जनजाति का प्रमुख नृत्य।
 यह नृत्य मृत्यु/गवन संस्कार के अवसर पर किया जाता है।
 स्त्री/पुरूष हाथों में तलवार ढ़ाल लेकर मृतक व्यक्ति के घर रात्रि में अग्नि जलाकर नृत्य करते हैं।

काण्डाली नृत्य (किर्जी नृत्य)

 भोटिया जनजाति में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य
 प्रत्येक 12 वर्षों पर कंडाली उत्सव के दौरान इस नृत्य को किया जाता है।

ढुंसका नृत्य

 भोटिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
 चांचरी तथा झोड़ा नृत्य के समान किया जाने वाला नृत्य।

पाण्डव नृत्य/पण्डवार्त नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र में पांडवों के जीवन प्रसंगों पर आधारित नवरात्रों में 9 दिन तक चलने वाला नाट्य नृत्य
 20 लोकनाट्य (चक्रव्यूह, कमलव्यूह, गैंडी-गैंडा वध) आदि।
 केदारघाटी क्षेत्र का विशेष महत्व।
 ढोल के 32 तालों व सैकड़ों स्वरो लिपियों का इस्तेमाल कर महाभारत गाथा गायी जाती है, पांडवों की कथा पर आधारित नृत्य।
 पाण्डव नृत्य को ’खुले मैदान‘ या ’मंडाण‘ का नृत्य के रूप में भी जाना जाता है।

लंगवीर नृत्य

 पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नट नृत्य।
 पुरूष खम्बे पर चढ़कर संतुलन बनाकर नगाड़ों पर नृत्य करते हैं।
 यह नृत्य का व्यावसायिक प्रकार है।

हारूल नृत्य

 लोकनृत्य व लोकगीत विशेषतः जौनसार क्षेत्र में
 गढ़वाल किसी देवता की पौराणिक कथा की ऐतिहासिक घटना, व्यक्ति विशेष की गाथा गाकर नृत्य किया जाता है।
 रामतुला व उमरू जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग अनिवार्य है।

सरौं नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र में किया जाने वाला युद्ध गीत नृत्य।
 कुमाऊं के छोलिया नृत्य समान।
 भोटिया जनजाति का ’पौणा नृत्य‘ भी इसी शैली का है।
 शादी-ब्याह, कार्यक्रम, मेलों के अवसर पर हाथ में तलवार व ढाल पकड़कर किया जाता है।

बुढ़ियात नृत्य

 गढ़वाल जौनसारी समाज में
 जन्मोत्सव, शादी ब्याह के अवसर पर किया जाता है।

नरसिंह नत्य

 कुमाऊं/गढ़वाल में नरसिंह पूजा गुरू गोरखनाथ शिष्य के रूप में की जाती है।
 नरसिंह वीर ’पश्वा‘ या अवतार पर जागर के दौरान आते हैं।

नागर्जा नृत्य

 नागर्जा/नागराजा कुमाऊं गढ़वाल के प्रमुख देवता का नृत्य है।
 नगार्जा को श्रीकृष्ण के रूप में माना जाता है।
 इस नृत्य में डौंर-थाली का प्रयोग अनिवार्य है।
 पश्वा जागर के माध्यम से हुड़की/थाली बोल पर नृत्य करते हैं।

निरंकार नृत्य

 बड़ा देवता/अलख देवता नृत्य
 इनको शिव का रूप माना जाता है।
 डौर-थाली प्रयोग अनिवार्य।


बाजूबंद नृत्य

 स्त्री पुरूषों के संवाद नृत्यगीत।
 रवांई, जौनपुर क्षेत्र में विषेषतः प्रसिद्ध।
 दूड़ा नृत्य भी इसे ही कहा जाता है।
 प्रेमी-प्रेमिका के मध्य भावानुक्रम प्रेम नृत्य।
 पांडव, गैंडा, डोली व रासो नृत्य किया जाता है।
 इस नृत्य का आयोजन माघ माह में किया जाता है।

छोपती नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र में आयोजित श्रृंगारिक नृत्य।
 प्रेम एवं रूप की भावना से युक्त स्त्री पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
 संवाद प्रधान नृत्य।

घुघती नृत्य

 बाल बालिकाओं द्वारा मनोरंजन हेतु किया जाने वाला नृत्य।
 यह नृत्य मुख्यतः गढ़वाल क्षेत्र में किया जाता है।

सिपैया नृत्य

 गढ़वाल क्षेत्र में आयोजित नृत्य।
 देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत नृत्य।

रणभूत नृत्य

 कुमाऊं एवं गढ़वाल दोनो में प्रसिद्ध।
 वीरगति को प्राप्त करने वालो महापुरूषों की आत्मसंतुष्टि हेतु नृत्य।
 इस नृत्य को वीरात्माओं का नृत्य भी कहते हैं।
 यह नृत्य वीरात्मा के परिवार/कुल द्वारा किया जाता है।
 नृत्य के साथ गायी जाने वाली विरूद्धावली कथा ’पण्डाव‘ या ’भड़वाली‘ कहलाती है।

लोटा नृत्य

 सिर पर लोटो की श्रृंखला रखकर उसमें आग जलाकर नृत्य किया जाता है।

बैर नृत्य

 कुमाऊं क्षेत्र का नृत्य
 गीत गायन प्रतियोगिता के रूप में किया जाने वाला नृत्य।

जागर नृत्य

 गढ़वाल, कुमाऊं क्षेत्र में पौराणिक गाथाओं पर आधारित नृत्य।
 जागर गीतों को गाने वाला – जगर्था (हाथ में डमरू/हुडकिया)
 थाली बजाने वाला/जोड़ लगाने वाला – औजी/भगरिया
 नृत्य करने वाला (देवता प्रवेश रूप) – पस्वा/डंगरिया

भैला-भैला नृत्य

 गढ़वाल में दीपावली के दिन भैला बांधकर किया जाता है।

ढोल नृत्य

 गढ़वाल/कुमाऊं (गढ़वाल में अधिक प्रचलित)
 औजी, बागजी जाति के लोग ढोल, दमाऊ, मसकबीन जैसे वाद्ययंत्रों को बजाते हुए गोल घेरे में सामूहिक नृत्य करते हैं।

हुड़किया बोल

 गढ़वाल व कुमाऊं की संस्कृति का महत्वपूर्ण पौराणिक नृत्य।
 मूलतः पिथौरागढ़ में प्रमुख रूप से शुरू है।
 हुड़की वादक स्वयं गायन व वादन के साथ नृत्य करते हैं।
 धार्मिक अनुष्ठानों पूजा-पाठ, कृषि संबंधित खेलो शादी बारात आदि में।

रांसू नृत्य

 गढ़वाल (जौनसार, जौनपुर, रंवाई क्षेत्र) में।
 अपहरण प्रथा के बाहुबल को व्यक्त करने वाला नृत्य।
 नृतक हाथ में डांगरी/फरसा लेकर नृत्य करता है।
 प्रेम प्रधान नृत्य

खुखरी नृत्य

 गोरखा रेजीमेंट के जवानों द्वारा खुखरी हथियार के साथ किया गया नृत्य।
थाली नृत्य

 रंवाई घाटी में प्रसिद्ध नृत्य।

बगड़वाल नृत्य

 नीति घाटी में प्रसिद्ध
 जीतू बगड़वाल से संबंधित नृत्य (गोपेश्वर/रूद्रप्रयाग)
 मध्य गढ़वाल के क्षेत्र में सुख समृद्धि की कामना हेतु किया गया नृत्य।

ठुलखेल नृत्य

 भोटिया समाज में पुरूष समाज द्वारा किया जाता है।
 पिथौरागढ़ के सोर, सीरा व अस्कोट में प्रसिद्ध।
 जोहार घाटी में अत्यधिक प्रचलित।

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