उत्तराखंड का लोक पर्व घुघुतिया (या घुघुतिया त्यौहार), जिसे मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है, राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व खासतौर पर कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
पर्व का महत्त्व:
घुघुतिया पर्व का सीधा संबंध प्रकृति, फसलों, और पक्षियों से है। इसे काले कौवे और अन्य पक्षियों के प्रति कृतज्ञता और उनके स्वागत का पर्व माना जाता है। इस दिन लोग पक्षियों के लिए विशेष पकवान बनाकर उन्हें खिलाते हैं और उनके प्रति प्रेम व सम्मान प्रकट करते हैं।
प्रमुख परंपराएं और रीति-रिवाज:
- घुघुत/घुघुते बनाना:
- इस दिन आटे से खास तरह के मीठे पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें घुघुतिया या घुघुते कहा जाता है।
- ये पकवान अलग-अलग आकार के बनाए जाते हैं, जैसे चिड़िया, फूल, गाड़ी, और माला।
- इन्हें गुड़ और घी मिलाकर तैयार किया जाता है, जिससे इनका स्वाद और भी लाजवाब होता है।
- पक्षियों को भोजन देना:
- सुबह के समय बच्चे और बड़े एक माला में घुघुते पिरोकर, छत या आंगन में जाकर पक्षियों को बुलाते हैं।
- बच्चे कौवों को बुलाते हुए गीत गाते हैं:
“काले कौवा काले, घुघुती माला खा ले।
ले कौवा बड धान, दे कौवा सुंदर ज्ञान।” - माना जाता है कि कौवे के आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
- मकर संक्रांति की मान्यता:
- यह दिन मकर संक्रांति के साथ मेल खाता है, जो सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व है। इसे नए साल की शुरुआत और फसलों की कटाई के उत्सव के रूप में भी देखा जाता है।
- घुघुत माला पहनना:
- बच्चे घुघुते की माला गले में पहनते हैं और इसे बड़े उत्साह से प्रदर्शित करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व:
- यह त्योहार न केवल प्रकृति और पक्षियों से जुड़ा है, बल्कि आपसी प्रेम, सद्भाव, और परिवारिक एकता का संदेश भी देता है।
- लोग इस दिन एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और उत्साहपूर्वक पर्व मनाते हैं।
- यह त्योहार नई पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण और पारंपरिक मूल्यों के प्रति जागरूक करता है।
घुघुतिया पर्व की सरलता और इसके पीछे छिपे प्रकृति प्रेम और सद्भावना के संदेश को देखकर इसे उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अनमोल हिस्सा माना जाता है।