उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण….

उत्तराखंड की वेशभूषा का परिचय

उत्तराखंड की वेशभूषा यहां की भौगोलिक स्थिति, मौसम, और सांस्कृतिक धरोहरों को दर्शाती है। यहां की वेशभूषा कुमाऊं और गढ़वाल दो प्रमुख सांस्कृतिक क्षेत्रों में बंटी हुई है। दोनों क्षेत्रों की वेशभूषा में भले ही कुछ अंतर हो, लेकिन उनका आधार पारंपरिक और सांस्कृतिक है।


2. महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा

उत्तराखंड की महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा उनकी सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

(a) घाघरा-चोली:

यह पारंपरिक परिधान उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा पहना जाता है। घाघरा एक लंबा घेरदार स्कर्ट होता है, जो रंगीन और सुंदर डिजाइनों से सुसज्जित होता है। इसके साथ चोली या ब्लाउज पहना जाता है।

(b) अंगड़ी या पिछौड़ा:

पिछौड़ा, जिसे “अंगड़ी” भी कहा जाता है, कुमाऊं क्षेत्र की महिलाओं द्वारा विशेष रूप से पहना जाता है। यह पीले या भगवा रंग का होता है और इसमें लाल रंग की सुंदर कढ़ाई होती है। इसे शादी, पूजा और अन्य शुभ अवसरों पर पहनना शुभ माना जाता है।

(c) सिर पर ओढ़नी:

महिलाएं अपने सिर को ओढ़नी या दुपट्टे से ढकती हैं। यह ओढ़नी आमतौर पर उनके कपड़ों से मेल खाती है और इसे धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।


3. पुरुषों की पारंपरिक वेशभूषा

पुरुषों की वेशभूषा भी उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है।

(a) कुर्ता-पायजामा:

यह उत्तराखंड के पुरुषों की पारंपरिक वेशभूषा है। कुर्ता आमतौर पर सफेद या हल्के रंग का होता है और इसे पायजामा या धोती के साथ पहना जाता है।

(b) लोई या चादर:

ठंड के मौसम में पुरुष ऊनी चादर या लोई का उपयोग करते हैं। यह उन्हें ठंड से बचाने के साथ-साथ एक पारंपरिक पहचान भी देता है।

(c) टोपी:

गढ़वाल और कुमाऊं के पुरुष टोपी पहनते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।


4. उत्तराखंड के पारंपरिक आभूषण

आभूषण उत्तराखंड की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यहां की महिलाओं के आभूषण न केवल उनकी सुंदरता को बढ़ाते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखते हैं।

(a) गहनों के प्रकार:

  1. नाकफूल और नथ:
    नाकफूल और नथ उत्तराखंड की महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण आभूषण हैं। ये शादी और अन्य विशेष अवसरों पर पहने जाते हैं। कुमाऊं और गढ़वाल की नथों में डिजाइन का अंतर होता है।
  2. गुलोबंद:
    यह गले में पहना जाने वाला हार होता है, जो सोने या चांदी से बना होता है। इसे शादी और अन्य पारंपरिक समारोहों में पहना जाता है।
  3. चूड़ियां और कड़े:
    चूड़ियां और कड़े महिलाओं के हाथों की शोभा बढ़ाते हैं। ये चांदी, सोने, या कांच के हो सकते हैं।
  4. पायजेब और बिचुए:
    उत्तराखंड की महिलाएं अपने पैरों में पायजेब और बिचुए पहनती हैं। ये चांदी से बने होते हैं और पारंपरिकता का प्रतीक माने जाते हैं।
  5. मांगटीका और सिरबंद:
    सिर के आभूषणों में मांगटीका और सिरबंद शामिल होते हैं। ये आभूषण शादी के समय दुल्हन की सुंदरता को और अधिक बढ़ा देते हैं।
  6. झुमके और कर्णफूल:
    कानों के आभूषण झुमके और कर्णफूल होते हैं। ये चांदी या सोने से बने होते हैं और इनमें स्थानीय डिजाइनों का इस्तेमाल किया जाता है।

5. वेशभूषा और आभूषणों का सांस्कृतिक महत्व

उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण न केवल सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि इनमें गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक अर्थ भी छिपे हुए हैं।

(a) धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व:

पिछौड़ा और नथ जैसे आभूषण धार्मिक और आध्यात्मिक अवसरों पर पहने जाते हैं। ये शुभता और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।

(b) विवाह और पारिवारिक परंपराएं:

शादी के समय पहने जाने वाले आभूषण और वेशभूषा परिवार की परंपराओं और रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं।

(c) सामाजिक स्थिति का प्रतीक:

आभूषण महिलाओं की सामाजिक स्थिति और पारिवारिक संपन्नता का प्रतीक होते हैं।


6. बदलते समय के साथ बदलाव

आधुनिकता के आगमन और शहरीकरण के कारण उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा और आभूषणों में बदलाव देखने को मिला है।

(a) पारंपरिकता का संरक्षण:

हालांकि आधुनिक परिधानों का चलन बढ़ा है, फिर भी पारंपरिक वेशभूषा और आभूषण विशेष अवसरों पर पहने जाते हैं।

(b) नई पीढ़ी की भूमिका:

नई पीढ़ी पारंपरिक परिधानों को आधुनिक डिजाइनों के साथ जोड़कर पहनना पसंद करती है।

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