बागेश्वर का उत्तरायणी कौतिक: एक सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व..

उत्तराखंड की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर में ‘उत्तरायणी कौतिक’ का विशेष स्थान है। बागेश्वर के सरयू और गोमती नदियों के संगम पर आयोजित होने वाला यह मेला धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत संगम है। यह मेला मकर संक्रांति के पावन अवसर पर आयोजित होता है और इसे उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक माना जाता है।

मकर संक्रांति और धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, और इस दिन को उत्तरायण काल का आरंभ माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सरयू और गोमती नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। बागेश्वर का यह मेला इस विश्वास के कारण न केवल स्थानीय बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि

बागेश्वर का यह क्षेत्र भगवान बागनाथ के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर 14वीं शताब्दी में चंद वंश के राजाओं द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की महत्ता के कारण यहां उत्तरायणी कौतिक का आयोजन आरंभ हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने बाघ का रूप धारण कर यहां तपस्या की थी, और इस कारण इस स्थान का नाम ‘बागेश्वर’ पड़ा।

मेले की विशेषताएं

  1. धार्मिक अनुष्ठान: मकर संक्रांति के दिन हजारों श्रद्धालु सरयू और गोमती नदियों में स्नान करते हैं और भगवान बागनाथ के दर्शन करते हैं। मंदिर में पूजा-अर्चना और विशेष अनुष्ठानों का आयोजन होता है।
  2. सांस्कृतिक कार्यक्रम: मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें उत्तराखंड की लोक परंपराओं की झलक मिलती है। स्थानीय कलाकार झोड़ा, चांचरी, और छपेली जैसे लोक नृत्यों का प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा, लोक गायन भी मेले का एक प्रमुख आकर्षण होता है।
  3. हस्तशिल्प और व्यापार: उत्तरायणी कौतिक मेला व्यापारियों और हस्तशिल्पकारों के लिए एक बड़ा मंच प्रदान करता है। यहां विभिन्न प्रकार के स्थानीय उत्पाद, जैसे ऊनी वस्त्र, लकड़ी के सामान, और हस्तनिर्मित गहने, बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं।
  4. पारंपरिक व्यंजन: मेले में उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों का भी आनंद लिया जा सकता है। बाल मिठाई, सिंगोरी, और झंगोरे की खीर जैसे व्यंजन मेले में प्रमुख आकर्षण होते हैं।

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव

बागेश्वर का उत्तरायणी मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव भी व्यापक है। यह मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है और पारंपरिक हस्तशिल्प तथा कृषि उत्पादों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।

मेले का आयोजन और व्यवस्थापन

मेले का आयोजन उत्तराखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से किया जाता है। श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। सुरक्षा, स्वच्छता, और आवागमन की व्यवस्था मेले के सफल आयोजन में अहम भूमिका निभाती है।

मेले से जुड़ी मान्यताएं और कहानियां

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मेले में भाग लेने से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यहां परंपरागत लोक कथाओं का भी आदान-प्रदान होता है, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद करता है।

वर्तमान में मेले की स्थिति

आज के समय में बागेश्वर का उत्तरायणी मेला न केवल उत्तराखंड बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। इसके बढ़ते महत्व और सांस्कृतिक विविधता के कारण इसे राज्य सरकार और पर्यटन विभाग द्वारा विशेष बढ़ावा दिया जा रहा है।

निष्कर्ष

बागेश्वर का उत्तरायणी कौतिक मेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति, लोक परंपराओं, और प्राकृतिक सौंदर्य का उत्सव भी है। यह मेला सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार, बागेश्वर का उत्तरायणी कौतिक मेला उत्तराखंड की विशिष्टता और सांस्कृतिक विविधता को एक नई पहचान प्रदान करता है।

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