उत्तराखंड का पारिस्थितिकी तंत्र मुख्य रूप से हिमालय की ऊँचाइयों, घने जंगलों, तेज बहती नदियों और विविध जैव विविधता पर आधारित है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण यहाँ कई समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।
1. हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ
- यहाँ दुनिया के कुछ सबसे ऊँचे पर्वत (नंदा देवी, त्रिशूल) हैं।
- घने जंगलों में देवदार, बांज, बुरांश जैसे महत्वपूर्ण वृक्ष पाए जाते हैं।
- हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, मोनाल (राज्य पक्षी) जैसे दुर्लभ जीव यहीं मिलते हैं।
- यहाँ की नदियाँ (गंगा, यमुना, अलकनंदा) भारत की जीवनरेखा हैं।
2. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
(क) ग्लेशियरों का पिघलना
- गंगोत्री और पिंडारी ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं।
- जलस्तर बढ़ने से बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
(ख) बारिश और बर्फबारी का बदलता पैटर्न
- पहले जहाँ सर्दियों में भारी बर्फबारी होती थी, अब वहाँ सूखा पड़ने लगा है।
- मानसून भी अनियमित हो गया है, जिससे खेती पर असर पड़ा है।
(ग) वन्यजीवों पर असर
- बढ़ते तापमान से हिम तेंदुआ और कस्तूरी मृग जैसे जानवरों का प्राकृतिक आवास घट रहा है।
- जंगलों में आग की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
3. समाधान और संरक्षण के उपाय
- वृक्षारोपण और जंगलों की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत।
- जल स्रोतों को बचाने और जलवायु अनुकूलन तकनीकों को अपनाने पर जोर देना।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) को बढ़ावा देना।
- स्थानीय समुदायों को जागरूक कर पर्यावरण संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का पारिस्थितिकी तंत्र न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन से हो रहे प्रभावों को कम करने के लिए सरकार और आम जनता दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे, ताकि इस सुंदर राज्य की प्राकृतिक संपदा को बचाया जा सके।