उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन: बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के बीच सतर्कता और समाधान

उत्तराखंड का अधिकांश भूभाग हिमालयी क्षेत्र में स्थित है और यह भूकंपीय क्षेत्र के जोन 4 और 5 में आता है। यहाँ के पर्वतों में प्राकृतिक जलस्रोत, ग्लेशियर, और अस्थिर चट्टानी संरचनाएँ विद्यमान हैं। यही कारण है कि यह क्षेत्र भूस्खलन, बाढ़, भूकंप, हिमस्खलन और ग्लेशियर झील विस्फोट (GLOF) जैसी आपदाओं की आशंका में रहता है।

वर्षा ऋतु में अत्यधिक वर्षा से यहाँ फ्लैश फ्लड और बादल फटने (Cloudburst) की घटनाएँ आम हो गई हैं, जो पहाड़ी इलाकों में भारी तबाही मचाती हैं।


🔶 हाल की प्रमुख आपदाएँ (2023–2025)

1. जोशीमठ भूधंसाव (2023):

  • यह घटना न केवल पर्यावरणीय असंतुलन को दर्शाती है, बल्कि अवैज्ञानिक निर्माण और अत्यधिक पर्यटन का दुष्परिणाम भी है।
  • जोशीमठ में हजारों मकानों में दरारें आ गईं और कई परिवारों को पलायन करना पड़ा।

2. उत्तरकाशी और चमोली में बादल फटना (2024):

  • जुलाई 2024 में उत्तरकाशी जिले में बादल फटने की घटना ने दर्जनों लोगों की जान ले ली और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ।

3. ग्लेशियर फटना और GLOF खतरा:

  • 2025 में चमोली के कुछ क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलें बनने और उनके फटने की आशंका जताई गई है, जिसके लिए वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है।

🔶 उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन प्रणाली

उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार दोनों मिलकर राज्य में आपदा प्रबंधन के लिए कई संस्थागत ढांचे स्थापित कर चुकी हैं:

1. SDMA (State Disaster Management Authority):

राज्य स्तरीय संस्था जो आपदा प्रबंधन नीति बनाती है और क्रियान्वयन की देखरेख करती है।

2. SDRF (State Disaster Response Force):

विशेष आपदा प्रतिक्रिया बल जो बचाव और राहत कार्यों को अंजाम देता है।

3. NDMA (National Disaster Management Authority):

राष्ट्रीय स्तर पर आपदा की पूर्व चेतावनी, तकनीकी सहायता और दिशा-निर्देश उपलब्ध कराती है।

4. सेना और ITBP की भूमिका:

विशेष रूप से केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में बचाव और राहत के कार्यों में सेना, ITBP और NDRF महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


🔶 मुख्य चुनौतियाँ

1. मौसम और स्थान की चुनौती:

दुर्गम पहाड़ों, खराब मौसम और सीमित संचार सुविधाओं के कारण राहत कार्य में विलंब होता है।

2. संसाधनों की कमी:

आपात स्थिति में हेलिकॉप्टर, आधुनिक मशीनों, मेडिकल सपोर्ट की कमी देखी जाती है।

3. गलत निर्माण कार्य:

अवैध और अनियोजित निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, सुरंगें और जलविद्युत परियोजनाएँ पारिस्थितिकीय संतुलन को तोड़ रही हैं।

4. जनजागरूकता का अभाव:

स्थानीय लोग और पर्यटक अक्सर आपदा के समय क्या करें, इसकी जानकारी नहीं रखते।


🔶 सरकार द्वारा उठाए गए कदम

🟢 1. आपदा चेतावनी प्रणाली:

मोबाइल अलर्ट, रेडियो प्रसारण, सैटेलाइट आधारित निगरानी प्रणाली जैसे कदम लिए जा रहे हैं।

🟢 2. ई-चरधाम ऐप और यात्रा पास:

2024 से यात्रियों की संख्या नियंत्रित करने के लिए ई-पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।

🟢 3. स्कूल स्तर पर आपदा शिक्षा:

आपदा प्रबंधन को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है ताकि बचपन से ही सतर्कता विकसित की जा सके।

🟢 4. रेस्क्यू केंद्रों की स्थापना:

बद्रीनाथ, केदारनाथ और यमुनोत्री जैसे स्थानों पर स्थायी राहत केंद्र बनाए जा रहे हैं।


🔶 समाधान और सुझाव

🔹 1. आपदा पूर्व चेतावनी तंत्र को मजबूत करना

  • सैटेलाइट आधारित ट्रैकिंग, हाई अलर्ट मैसेज सिस्टम को और सशक्त बनाने की आवश्यकता है।

🔹 2. पर्यावरण के अनुकूल विकास नीति

  • निर्माण कार्यों में EIA (Environmental Impact Assessment) की सख्ती से पालना हो।

🔹 3. सामुदायिक सहभागिता

  • स्थानीय युवाओं को ‘आपदा मित्र’ के रूप में प्रशिक्षण देकर फर्स्ट रिस्पॉन्डर की भूमिका में लाना।

🔹 4. पर्यटन नियंत्रण नीति

  • सीमित संख्या में यात्री, प्रतिबंधित वाहन, और प्लास्टिक मुक्त ज़ोन घोषित किए जाएँ।

🔹 5. डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम

  • ड्रोन, CCTV, GIS मैपिंग जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग आपदा पूर्व और पश्चात मूल्यांकन में किया जाए।

सतर्कता ही सुरक्षा है

उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्ता इसे विशेष बनाती है, लेकिन इसके साथ ही यह एक नाजुक पारिस्थितिकीय क्षेत्र भी है। यदि हमें इसके भविष्य को सुरक्षित रखना है, तो हमें केवल आपदा के बाद नहीं, आपदा से पहले तैयार रहना होगा। शासन, प्रशासन, वैज्ञानिक, आम जनता और यात्रियों को मिलकर सतर्कता, सजगता और समन्वय से काम करना होगा।

‘प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं, सहयोग करें – तभी बचेगा उत्तराखंड, तभी बचेगा भविष्य।’


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