हिंदी दिवस:- जहां भावनाएं और शब्द मिलकर कहानी कहते हैं….

हर साल 14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस बड़े गर्व के साथ मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ एक तिथि नहीं बल्कि हमारी पहचान का प्रतीक है। 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में अपनाया था। यह निर्णय सिर्फ भाषाई नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक था। हिंदी ने हमें एक साझा पहचान दी, एक ऐसा धागा जो विविधता भरे भारत को एक सूत्र में पिरोता है।

हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। लगभग 50 करोड़ से भी अधिक लोग हिंदी को मातृभाषा के रूप में बोलते हैं और करोड़ों लोग इसे समझते हैं। यह भाषा सिर्फ उत्तर भारत की नहीं, बल्कि पूरे देश में लोगों को जोड़ने का काम करती है। फिल्मों से लेकर साहित्य, राजनीति से लेकर शिक्षा – हर जगह हिंदी का योगदान अमूल्य है।

आज के डिजिटल युग में हिंदी का प्रभाव पहले से कई गुना बढ़ चुका है। सोशल मीडिया, यूट्यूब, पॉडकास्ट और ब्लॉगिंग की दुनिया में हिंदी का कंटेंट तेजी से बढ़ रहा है। हिंदी में मीम्स बन रहे हैं, मोटिवेशनल वीडियो वायरल हो रहे हैं और युवा पीढ़ी हिंदी में गाने, कविताएँ और कहानियाँ लिख रही है। यह इस बात का सबूत है कि हिंदी सिर्फ जीवित नहीं, बल्कि लगातार प्रगति कर रही है।

फिर भी एक चिंता की बात यह है कि कई लोग हिंदी बोलने में झिझकते हैं या इसे ‘कमतर’ समझते हैं। अंग्रेज़ी सीखना अच्छी बात है, लेकिन अपनी भाषा पर गर्व करना उससे भी ज्यादा ज़रूरी है। हमें यह समझना होगा कि जो भाषा हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, जो हमें हमारी संस्कृति का एहसास कराती है, उसे हीन भावना से देखना गलत है।

हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाने का मौका देता है कि हिंदी को सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे साल अपनाना चाहिए। हमें अपने बच्चों को हिंदी में पढ़ने, लिखने और सोचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हमें दफ्तरों, स्कूलों, कॉलेजों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हिंदी का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए।

हिंदी का महत्व सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं है। यह हमारी पहचान, संस्कृति और स्वाभिमान की प्रतीक है। अगर हम अपनी भाषा को भूल जाएंगे, तो धीरे-धीरे अपनी संस्कृति से भी दूर हो जाएंगे। इसलिए, हिंदी दिवस सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि एक संकल्प होना चाहिए – अपनी भाषा को और समृद्ध बनाने का संकल्प।

14 सितंबर का दिन हर साल हमें याद दिलाता है कि हिंदी हमारी पहचान है, हमारा गर्व है। 1949 में जब संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया, तब इसका मकसद था कि भारत के हर कोने में एक साझा भाषा हो, जो सबको जोड़ सके। आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं, भाषण होते हैं, पोस्टर लगते हैं, लेकिन एक बड़ा सवाल उठता है – क्या हम सच में हिंदी के लिए कुछ कर रहे हैं?

आज के समय में एक बड़ी समस्या यह है कि लोग अपने बच्चों को हिंदी सिखाने से कतराने लगे हैं। कई परिवारों में माता-पिता अपने बच्चों से अंग्रेज़ी में बात करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि अंग्रेज़ी बोलने से बच्चे स्मार्ट बनेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि जब बच्चे अपनी मातृभाषा से दूर होते हैं, तो वे अपनी जड़ों से भी दूर होते जाते हैं। भाषा सिर्फ शब्द नहीं, भावनाएँ और संस्कृति भी लेकर आती है।

आज की पीढ़ी को हिंदी गाने, हिंदी कविताएँ और हिंदी मुहावरे तक याद नहीं रहते। सोशल मीडिया पर हिंदी लिखने में लोग शर्म महसूस करते हैं। यह स्थिति खतरनाक है। अगर यही चलता रहा, तो आने वाले सालों में हिंदी सिर्फ किताबों में रह जाएगी और उसका असली स्वरूप खो जाएगा।

हिंदी दिवस हमें यह सोचने का मौका देता है कि हमें हिंदी को सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पूरे साल जीना चाहिए। हमें अपने बच्चों को हिंदी में कहानियाँ सुनानी चाहिए, उन्हें हिंदी किताबें दिलानी चाहिए और हिंदी में बातचीत करनी चाहिए। बच्चे जब अपनी मातृभाषा में सोचते और समझते हैं, तो उनका व्यक्तित्व मजबूत बनता है।

डिजिटल युग में भी हिंदी का महत्व बढ़ रहा है। इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट की डिमांड तेजी से बढ़ी है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम और पॉडकास्ट पर हिंदी क्रिएटर्स को करोड़ों लोग सुनते हैं। यह बताता है कि हिंदी में अपार संभावनाएँ हैं। बस हमें खुद आगे बढ़कर इसे अपनाना होगा।

हिंदी दिवस सिर्फ भाषण देने का दिन नहीं है। यह दिन हमें यह संकल्प लेने का मौका देता है कि हम हिंदी को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाएँगे। स्कूलों और घरों में बच्चों को हिंदी का महत्व समझाएँगे। दफ्तरों में, दोस्तों के बीच और सोशल मीडिया पर हिंदी का प्रयोग बढ़ाएँगे।

आइए, इस हिंदी दिवस पर हम यह ठान लें कि हम आने वाली पीढ़ी को हिंदी से जोड़ेंगे। क्योंकि अगर हमने आज हिंदी को नहीं बचाया, तो कल शायद हमें अपनी ही पहचान ढूँढनी पड़ेगी। हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, भारत की आत्मा है – और इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।



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