आज के युग को “आधुनिकता का युग” कहा जाता है। तकनीक, फैशन, और स्वतंत्र सोच ने हमारे जीवन को बदल दिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह आधुनिकता सही दिशा में जा रही है? आज कॉलेजों के बाहर धूम्रपान करते लड़के-लड़कियाँ, शिक्षकों के प्रति घटता सम्मान, और पहनावे में मर्यादा की कमी—क्या यही आधुनिकता है जिसकी हमें जरूरत थी?
1. संस्कारों से दूरी और दिखावे की होड़
आज का युवा वर्ग आधुनिक बनने की चाह में अपने मूल संस्कारों को भूलता जा रहा है। पश्चिमी संस्कृति को अपनाना बुरा नहीं, लेकिन अंधानुकरण खतरनाक है। विदेशी फिल्में, सोशल मीडिया ट्रेंड्स, और फैशन शो के प्रभाव में आज के बच्चे अपनी असली पहचान खोते जा रहे हैं। सिगरेट या शराब पीना उन्हें “कूल” या “फ्री” लगने लगा है, जबकि यह सिर्फ दिखावे की आज़ादी है।
2. शिक्षक का सम्मान क्यों घटा?
पहले गुरु को भगवान का दर्जा दिया जाता था। लेकिन आज के दौर में शिक्षक को “जॉब प्रोवाइडर” से ज़्यादा कुछ नहीं समझा जाता। मोबाइल और इंटरनेट ने ज्ञान को आसान बना दिया, पर इसने आदर का मूल्य कम कर दिया। यह भूलना नहीं चाहिए कि तकनीक किताबें दे सकती है, लेकिन संस्कार नहीं।
3. माता-पिता और समाज की भूमिका
अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को “फ्रीडम” के नाम पर पूरी छूट दे देते हैं। लेकिन सही और गलत की समझ देना भी उनकी जिम्मेदारी है। घर से मिलने वाली शिक्षा ही बच्चों का भविष्य तय करती है। समाज को भी “जजमेंट” करने के बजाय “गाइडेंस” देनी चाहिए।
4. कैसे रोका जा सकता है यह पतन?
- संस्कारों की शिक्षा: स्कूलों और घरों में नैतिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति से जुड़े मूल्य फिर से सिखाए जाएँ।
- सकारात्मक माहौल: कॉलेजों में “संस्कार वर्कशॉप” और “डिबेट सेशन” के ज़रिए युवाओं को जागरूक किया जाए।
- सोशल मीडिया का संयम: अभिभावक बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार पर ध्यान दें।
- रोल मॉडल बनना: शिक्षक और माता-पिता खुद वह उदाहरण बनें जो बच्चे अपनाना चाहें।
- सरकारी पहल: युवाओं के लिए “सांस्कृतिक अभियान” और नशा-मुक्ति कार्यक्रम शुरू किए जाएँ।
आधुनिकता बुरी नहीं है, लेकिन उसका गलत अर्थ निकालना खतरनाक है। असली आधुनिकता वह है जिसमें व्यक्ति तकनीकी रूप से आगे बढ़े लेकिन अपने संस्कारों और मर्यादाओं को न भूले।
अगर हम अपने बच्चों को सिर्फ “स्मार्ट” नहीं बल्कि “संस्कारवान” बनाएँ, तो यही सच्ची प्रगति होगी।