उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की प्रतिष्ठित VPO/VDO भर्ती परीक्षा, जो 21 सितंबर 2025 को आयोजित की गई थी, अब रद्द (Postpone) कर दी गई है।
यह फैसला तब लिया गया जब परीक्षा के दौरान पेपर लीक होने की शिकायतें सोशल मीडिया और छात्र संगठनों के माध्यम से सामने आईं।
इस घटना ने एक बार फिर उत्तराखंड की भर्ती प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लाखों बेरोजगार युवाओं की उम्मीदें, जिन्होंने इस परीक्षा के लिए दिन-रात मेहनत की थी, एक झटके में टूट गईं।
पेपर लीक की घटना — कैसे हुआ खुलासा
21 सितंबर की सुबह जब परीक्षा शुरू हुई, तो कुछ ही समय बाद प्रश्नपत्र के तीन पेज सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
जाँच में सामने आया कि हरिद्वार जिले के एक परीक्षा केंद्र से यह लीक हुआ था।
पुलिस ने इस मामले में एक आरोपी खालिद मलिक को गिरफ्तार किया, जिसने कथित तौर पर परीक्षा केंद्र से प्रश्नपत्र की तस्वीरें खींचकर अपनी बहन को भेजीं।
इसके बाद जांच में हाकम सिंह नाम का पुराना आरोपी भी सामने आया — जिसने पहले भी पेपर लीक प्रकरणों में भूमिका निभाई थी।
इन घटनाओं के बाद आयोग और सरकार दोनों पर बड़ा दबाव बना।
अभ्यर्थियों और संगठनों का आंदोलन
पेपर लीक की खबर फैलते ही देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार समेत कई जिलों में अभ्यर्थी सड़कों पर उतर आए।
बेरोजगार संघों ने आयोग के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की और पूरी परीक्षा को रद्द करने की मांग की।
अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि सरकार और आयोग हर बार “जाँच का भरोसा” देकर मामला टाल देते हैं, लेकिन दोषी कभी सज़ा नहीं पाते।
प्रदर्शन के बढ़ते दबाव को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हस्तक्षेप किया और SIT (Special Investigation Team) गठित कर जांच के आदेश दिए।
सरकार ने साफ कहा कि “जो भी दोषी होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि मामले की जांच या तो CBI या न्यायिक आयोग के माध्यम से कराई जाएगी, ताकि किसी पर भी पक्षपात का आरोप न लगे।
युवाओं पर असर और सवाल
कई अभ्यर्थियों ने कहा कि “हर बार पेपर लीक से मेहनत करने वालों का नुकसान होता है, जबकि दोषी कुछ लोग बच निकलते हैं।”
जनता के बीच यह सवाल अब तेज़ी से उठ रहा है —
क्या उत्तराखंड की भर्ती प्रणाली अब भी सुरक्षित है?
और क्या आने वाली परीक्षाओं में युवा निश्चिंत होकर बैठ पाएंगे?