उत्तराखंड में मई और जून के गर्म मौसम में पहाड़ों में कंटीली झाड़ियों के बीच एक रसदार फल उगता है जिसे हिसालू (Hisalu) कहते हैं.
हिसालू को हिमालय की रास्पबेरी भी कहा जाता है. इसका लेटिन नाम रुबस इलिप्टिकस (Rubus elipticus) है , जो कि Rosaceae कुल की झाड़ीनुमा वनस्पति है. विश्व में इसकी लगभग 1500 प्रजातियां पायी जाती है. हिसालू का दाना कई छोटे-छोटे नारंगी रंग के कणों का समूह जैसा होता है. हिसालू खाने में खट्टा और मीठा होता है. अच्छी तरह से पका हुआ हिसालू बहुत अधिक मीठा होता है.
उत्तराखंड के अलावा हिसालू भारत में लगभग सभी हिमालयी राज्यों में उच्च उंचाई पर पाया जाता है. भारत के अलावा यह नेपाल, नेपाल, पाकिस्तान, पोलैण्ड, सर्बिया, रूस, मेक्सिको, वियतनाम आदि देशों में पाया जाता है.
हिसालू के केवल खाने में ही स्वादिष्ट होता है ऐसा नहीं है इसके बहुत से औषधीय गुण भी हैं. हिसालू को एंटीआक्सीडेंट प्रभावों से युक्त पाया गया है. इसकी ताजी जड़ों के रस का प्रयोग पेट से जुड़ी बिमारियों के लिये किया जाता है.
हिसालू के दानों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार, पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में भी फायदेमंद होता है. हिसालू जैसी वनस्पति को सरंक्षित किये जाने की आवश्यकता को देखते हुए इसे आई.यू.सी.एन . द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज की लिस्ट में शामिल किया गया है.
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी हिसालू पर देखा गया है. अमूमन 2500 से 7000 फीट की उंचाई पर सामान्य रुप से पाया जाने वाला हिसालू अब अधिक उंचाई पर पाया जाने लगा है.
हिसालू में अनेक पोषक तत्व पाये जाते हैं. हिसालू में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, पोटेशियम, सोडियम व एसकरविक एसिड उपलब्ध होते हैं. इसमें विटामिन सी 32 प्रतिशत, फाइबर 26 प्रतिशत, मैंगनीज़ 32 प्रतिशत तक पाया जाता है. हिसालू में शुगर की मात्रा सिर्फ 4 प्रतिशत तक ही पायी गयी है.
देवभूमि करियर पॉइंट , उत्तराखंड
thanks, guru aapka, priya, shisya, panku