भारत के आर्थिक परिवर्तन के सूत्रधार: डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित और महान नेता रहे हैं। उनका योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधार में अमूल्य रहा है, विशेष रूप से 1991 में जब उन्होंने भारतीय आर्थिक उदारीकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए थे। डॉ. सिंह का प्रधानमंत्री बनने से पहले भी एक लंबा और समृद्ध करियर रहा है, जिसमें उन्होंने विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया। उनके कार्यकाल में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई, लेकिन साथ ही उन्होंने भारतीय राजनीति में कई कठिन परिस्थितियों का सामना भी किया।

इस लेख में हम डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन, उनके कार्यकाल, उनके योगदान और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद की प्रमुख घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब के गोरीवाला गाँव (जो अब पाकिस्तान में स्थित है) में हुआ था। उनका परिवार विभाजन के समय भारत आकर पंजाब के अमृतसर में बस गया। उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय सिख परिवार था। उनकी प्राथमिक शिक्षा स्थानीय स्कूल से ही हुई, जिसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से D.Phil. (डॉक्टरेट) की डिग्री हासिल की।

करियर की शुरुआत और भारतीय रिजर्व बैंक

डॉ. मनमोहन सिंह का करियर भारतीय प्रशासन में शुरू हुआ। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) में अर्थशास्त्री के रूप में काम किया। 1982 से 1985 तक वे RBI के गवर्नर रहे, जहां उन्होंने भारतीय बैंकिंग और मुद्रा नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। इस समय के दौरान उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए कई कदम उठाए।

उनकी कार्यशैली और पेशेवर क्षमता को देखते हुए, वे भारतीय सरकार के नीति निर्माता के रूप में पहचान बनाए। 1985 में उन्हें भारतीय सरकार में एक उच्च पद पर नियुक्त किया गया और उन्होंने वित्तीय नीति और अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों के क्षेत्र में योगदान देना शुरू किया।

1991 में वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधार

डॉ. मनमोहन सिंह का भारतीय राजनीति में असली प्रभाव 1991 में तब पड़ा जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। 1991 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही थी। विदेशी मुद्रा का भंडार घटकर निम्नतम स्तर पर आ गया था, और भारत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण प्राप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इस संकट से उबरने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाए।

  1. आर्थिक उदारीकरण: डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोलने की दिशा में कदम उठाए। उन्होंने व्यापारिक नीतियों में बदलाव करते हुए आयात प्रतिबंधों को कम किया और निर्यात पर जोर दिया।
  2. निजीकरण और विनिवेश: सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने का कार्य शुरू किया गया, जिससे सरकारी कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार हुआ।
  3. विदेशी निवेश की सुविधा: विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित करने के उद्देश्य से कई नीतियाँ बनाई गईं।

इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर किया और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत किया। इसके परिणामस्वरूप भारत में उच्च आर्थिक विकास दर, कम मुद्रास्फीति और बेहतर रोजगार अवसर पैदा हुए।

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (2004-2014)

2004 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए (संयुक्त प्रगति गठबंधन) सरकार सत्ता में आई और डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और भारत के विकास को प्राथमिकता दी। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत की राजनीति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।

  1. शिक्षा क्षेत्र में सुधार: डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। 2009 में, उन्होंने “राइट टू एजुकेशन” (RTE) अधिनियम को लागू किया, जिसके तहत सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की गई।
  2. स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार: उनकी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सस्ती बनाने के लिए कई योजनाएँ बनाई। 2008 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को फिर से लागू किया गया और चिकित्सा के लिए नए बजट आवंटित किए गए।
  3. ग्रामीण विकास: उन्होंने ग्रामीण भारत में समग्र विकास के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) को लागू किया, जिससे लाखों ग्रामीणों को रोजगार मिला।
  4. आंतरराष्ट्रीय संबंध: डॉ. मनमोहन सिंह ने विदेश नीति को प्रगति की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 2005 में, उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच नागरिक परमाणु समझौते (India-US Civil Nuclear Agreement) को मंजूरी दी, जिससे भारत को परमाणु ऊर्जा के उपयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मिला।
  5. भारत-अमेरिका संबंध: उनके कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूत किया गया, विशेष रूप से 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता हुआ, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण था।

आर्थिक संकट और आलोचनाएँ

हालांकि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने कई क्षेत्रों में सुधार किए, फिर भी उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ आर्थिक संकटों का सामना भी करना पड़ा। 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट का असर भारत पर भी पड़ा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में कमी आई। इसके अलावा, यूपीए सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों का सामना भी करना पड़ा, जिनमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोल घोटाला प्रमुख थे। इन घोटालों के कारण सरकार की छवि पर असर पड़ा, और विपक्ष ने उन पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का आरोप लगाया।

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व और नेतृत्व

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व शांति और संयम से भरा था। वे एक सोच-समझकर निर्णय लेने वाले नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका नेतृत्व शांत, गंभीर और सूझबूझ वाला था, जो कभी भी सार्वजनिक विवाद से बचता था। उनकी कार्यशैली में हमेशा एक ठंडा दिमाग और दीर्घकालिक सोच शामिल होती थी।

उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर रहते थे और हमेशा समाधान की दिशा में सोचते थे। हालांकि, उनके नेतृत्व में यूपीए सरकार को कई आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने कार्यों से यह साबित किया कि वे एक सक्षम और दूरदर्शी नेता हैं।

समापन

डॉ. मनमोहन सिंह का राजनीतिक करियर और उनके द्वारा किए गए सुधार भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में अहम स्थान रखते हैं। उनके प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल को भारतीय राजनीति में एक युग के रूप में याद किया जाएगा। उनका कार्य भारतीय राजनीति के लिए प्रेरणास्त्रोत बना है, और उनकी नेतृत्व क्षमता को हमेशा सराहा जाएगा। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि संयम, सोच-समझकर निर्णय और निष्ठा के साथ कार्य करने से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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