उत्तराखंड, जिसे हिमालय की गोद में बसे “देवभूमि” के नाम से जाना जाता है, अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, राज्य की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि पर आधारित है, फिर भी यहां पहाड़ी खेती अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। इन चुनौतियों में से एक प्रमुख समस्या है ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी इलाकों या मैदानी क्षेत्रों में पलायन। यह न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन को भी प्रभावित कर रही है।
पहाड़ी खेती: एक परिचय
उत्तराखंड की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। राज्य में खेती का स्वरूप मुख्यतः पहाड़ी है, जहां सीढ़ीनुमा खेत (टेरस फार्मिंग) प्रचलित हैं। इन खेतों में मुख्यतः जैविक और पारंपरिक विधियों का उपयोग किया जाता है। प्रमुख फसलें हैं:
- धान, गेहूं और जौ: ये मुख्य खाद्य फसलें हैं जो यहां के निवासियों की आजीविका का आधार हैं।
- मडुवा और झंगोरा: पारंपरिक अनाज, जो पोषण से भरपूर और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
- दलहन और तिलहन: मसूर, उड़द, सरसों जैसी फसलें भी उगाई जाती हैं।
- फल और सब्जियां: सेब, आड़ू, आलूबुखारा, किलमोड़ा, और मटर जैसी फसलें पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
पहाड़ी खेती की चुनौतियां
- भौगोलिक बाधाएं:
- पहाड़ी इलाकों में खेती करना अत्यंत कठिन है। भूमि छोटी, पथरीली और असमान है, जिससे बड़े पैमाने पर कृषि यांत्रिकीकरण संभव नहीं हो पाता।
- जल की कमी:
- सिंचाई के साधन सीमित हैं। अधिकांश खेती वर्षा पर निर्भर है, और वर्षा के अनियमित होने से फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
- मिट्टी का कटाव:
- अत्यधिक बारिश और ढलान वाली जमीन के कारण मिट्टी का कटाव होता है, जिससे उपजाऊ भूमि कम हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन:
- बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और बर्फबारी की कमी ने खेती के पारंपरिक तरीकों को अप्रभावी बना दिया है।
- आर्थिक और प्रौद्योगिकीय संसाधनों की कमी:
- किसानों को उन्नत बीज, खाद, और आधुनिक उपकरणों की कमी होती है।
पलायन की समस्या: एक गंभीर चुनौती
पलायन उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। पहाड़ी क्षेत्रों के लोग शिक्षा, रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में मैदानी इलाकों या शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
पलायन के कारण
- रोजगार के अवसरों की कमी:
- पहाड़ी इलाकों में रोजगार के सीमित अवसर होने के कारण लोग शहरों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव:
- बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश में ग्रामीण युवा पलायन कर रहे हैं।
- कृषि की गिरती उत्पादकता:
- कठिनाईपूर्ण खेती और फसल की घटती उपज के कारण लोग खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।
- बुनियादी सुविधाओं की कमी:
- सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता भी पलायन को बढ़ावा देती है।
पलायन के प्रभाव
- परित्यक्त गांव:
- उत्तराखंड में कई गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं, जिन्हें अब “भूतिया गांव” कहा जाता है।
- सामाजिक असंतुलन:
- पलायन से गांवों में केवल बुजुर्ग और महिलाएं बचते हैं, जिससे सामाजिक संरचना कमजोर होती है।
- जैव विविधता पर प्रभाव:
- परित्यक्त खेती की जमीन बंजर हो जाती है, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता को नुकसान होता है।
- शहरीकरण का दबाव:
- पलायन से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या दबाव बढ़ता है, जिससे वहां की बुनियादी सुविधाएं प्रभावित होती हैं।
समस्या का समाधान
पलायन रोकने और पहाड़ी खेती को पुनर्जीवित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- कृषि में सुधार:
- उन्नत तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर कृषि की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- पारंपरिक फसलों के साथ-साथ औषधीय पौधों और बागवानी को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- सिंचाई की व्यवस्था:
- सिंचाई के आधुनिक साधन, जैसे ड्रिप इरिगेशन और रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अपनाया जाना चाहिए।
- स्थानीय उद्योगों का विकास:
- ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित छोटे उद्योग, जैसे जैविक उत्पाद, बुनाई, और हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया जाए।
- पर्यटन को प्रोत्साहन:
- होमस्टे और इको-टूरिज्म को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं:
- ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना आवश्यक है।
- महिला सशक्तिकरण:
- महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना, जैसे सिलाई-कढ़ाई और हस्तशिल्प कार्य।
सरकार और गैर-सरकारी प्रयास
उत्तराखंड सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन रोकने और कृषि सुधार के लिए कार्य कर रहे हैं।
- मुख्यमंत्री पलायन आयोग:
- राज्य में पलायन के कारणों और समाधान पर काम करता है।
- जैविक खेती मिशन:
- किसानों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करता है।
- एनजीओ और स्वयंसेवी समूह:
- स्थानीय स्तर पर युवाओं को स्वरोजगार और खेती में रुचि लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की पहाड़ी खेती और पलायन की समस्या एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। खेती की स्थिति सुधारकर और ग्रामीण इलाकों में रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाकर पलायन को रोका जा सकता है। साथ ही, राज्य की प्राकृतिक संपदाओं का सही उपयोग कर स्थायी विकास की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है।
यह सुनिश्चित करना हम सबकी जिम्मेदारी है कि उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और प्रकृति की धरोहर सुरक्षित रहे और आने वाली पीढ़ियों को बेहतर भविष्य मिल सके।