उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाएँ और पारिस्थितिक संतुलन: अवसर और चुनौतियाँ…

उत्तराखंड भारत के उत्तर में स्थित एक पर्वतीय राज्य है, जिसे प्राकृतिक संसाधनों की समृद्धि और गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। यह राज्य अपनी ऊँचाई और जल स्रोतों के कारण जलविद्युत उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। जलविद्युत परियोजनाएँ ऊर्जा उत्पादन का एक स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोत मानी जाती हैं, लेकिन इसके साथ ही यह पारिस्थितिक संतुलन को भी प्रभावित करती हैं। इस लेख में, उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाओं के अवसरों और चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।

जलविद्युत परियोजनाओं का इतिहास और वर्तमान स्थिति

उत्तराखंड में जलविद्युत विकास का इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसमें तेजी आई। टिहरी जलविद्युत परियोजना (260.5 मीटर ऊँचाई के साथ भारत की सबसे बड़ी बाँध परियोजनाओं में से एक) इस राज्य में जलविद्युत विकास की प्रमुख पहचान बनी। वर्तमान में उत्तराखंड में निम्नलिखित प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ कार्यरत हैं:

  1. टिहरी जलविद्युत परियोजना (1000 मेगावाट)
  2. कोटेश्वर जलविद्युत परियोजना (400 मेगावाट)
  3. धौलीगंगा जलविद्युत परियोजना (280 मेगावाट)
  4. विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (400 मेगावाट)
  5. मनेरी भाली जलविद्युत परियोजना (304 मेगावाट)
  6. पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना (5600 मेगावाट प्रस्तावित)

सरकार की नीतियाँ इन परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे राज्य की ऊर्जा क्षमता में वृद्धि हुई है।

जलविद्युत परियोजनाओं के अवसर

1. ऊर्जा उत्पादन और आत्मनिर्भरता

उत्तराखंड की जलविद्युत परियोजनाएँ राज्य को ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रही हैं। राज्य में उत्पादित बिजली अन्य राज्यों को भी निर्यात की जाती है।

2. आर्थिक विकास

बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देती हैं। इनसे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होते हैं और इससे सरकार को राजस्व भी प्राप्त होता है।

3. हरित ऊर्जा स्रोत

कोयला और पेट्रोलियम आधारित ऊर्जा के मुकाबले जलविद्युत एक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।

4. सिंचाई और जल आपूर्ति

कुछ जलविद्युत परियोजनाएँ बहुउद्देशीय होती हैं, जो न केवल बिजली उत्पादन करती हैं बल्कि सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में भी मदद करती हैं।

5. पर्यटन विकास

टिहरी झील और अन्य जलाशयों के विकास से पर्यटन को बढ़ावा मिला है, जिससे स्थानीय व्यवसायों को लाभ हो रहा है।

जलविद्युत परियोजनाओं की चुनौतियाँ

1. पारिस्थितिक असंतुलन

नदी प्रवाह को रोकने से जलीय जीवों और स्थानीय पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे मछली पालन और जैव विविधता प्रभावित होती है।

2. भूस्खलन और भूकंप का खतरा

उत्तराखंड एक भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है। बड़े बाँधों के निर्माण से भूकंपीय हलचलों और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा में यह स्पष्ट रूप से देखा गया।

3. नदी पारिस्थितिकी पर प्रभाव

जलविद्युत बाँधों के कारण गंगा, यमुना और अन्य नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बदलाव आता है, जिससे जलचक्र प्रभावित होता है।

4. स्थानीय समुदायों का विस्थापन

बड़ी परियोजनाओं के कारण स्थानीय गाँवों को स्थानांतरित किया जाता है, जिससे उनकी आजीविका और सांस्कृतिक धरोहर प्रभावित होती है।

5. पर्यावरणीय एवं कानूनी विवाद

कई जलविद्युत परियोजनाएँ पर्यावरणविदों और स्थानीय संगठनों के विरोध का सामना कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने कई परियोजनाओं पर रोक लगाई है।

समाधान और संतुलित विकास के सुझाव

  1. सतत विकास की नीति: जलविद्युत परियोजनाओं को सतत विकास के सिद्धांतों के आधार पर संचालित किया जाना चाहिए, जिससे ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरणीय सुरक्षा में संतुलन बना रहे।
  2. छोटी जलविद्युत परियोजनाओं को प्राथमिकता: बड़े बाँधों के बजाय, छोटे पैमाने की जलविद्युत परियोजनाएँ विकसित करनी चाहिए, जिनका पर्यावरण पर कम प्रभाव हो।
  3. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को मजबूत बनाना: सभी परियोजनाओं के लिए कठोर EIA अनिवार्य किया जाए और पारदर्शी समीक्षा की जाए।
  4. स्थानीय समुदायों को लाभ देना: प्रभावित गाँवों के पुनर्वास और आजीविका के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जाएँ।
  5. अन्य हरित ऊर्जा स्रोतों पर जोर: सौर और पवन ऊर्जा को जलविद्युत का विकल्प बनाया जाए ताकि पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।

निष्कर्ष

उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाएँ ऊर्जा उत्पादन और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका पर्यावरण पर गहरा प्रभाव भी पड़ता है। सरकार और नीति-निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जलविद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय संतुलन के साथ विकसित किया जाए। संतुलित नीति और सतत विकास के दृष्टिकोण को अपनाकर ही हम उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखते हुए ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।

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