“विकास के नारों में गुम होता युवा भारत!” (“Young India Lost in the Echo of Development Promises”)

“सबका साथ, सबका विकास” जैसे नारों के बीच भारत तेजी से आगे बढ़ने का दावा करता है। मेट्रो शहरों में चमचमाती इमारतें, डिजिटल इंडिया, चंद्रयान मिशन, और बुलंद GDP आंकड़े – ये सब मिलकर एक प्रगतिशील भारत की तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन इसी तस्वीर के पीछे छिपा है एक चुपचाप संघर्ष करता हुआ युवा वर्ग, जिसकी उम्मीदें, ज़रूरतें और समस्याएँ अब केवल भाषणों और घोषणाओं तक सीमित रह गई हैं।

आज का युवा नारे तो सुन रहा है, लेकिन सवाल कर रहा है – “क्या इस विकास में मेरा भी कोई हिस्सा है?”


मुख्य मुद्दे (Main Issues):

1. बढ़ती बेरोज़गारी:

– करोड़ों डिग्रीधारी युवा सरकारी और प्राइवेट दोनों क्षेत्रों में रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
– हर साल लाखों नौकरियों के वादे होते हैं, लेकिन हकीकत में हजारों पोस्ट या तो रद्द हो जाती हैं या पेपर लीक की भेंट चढ़ जाती हैं।

2. शिक्षा और कौशल में अंतर:

– विकास की दौड़ में शिक्षा तो बढ़ी है, लेकिन कौशल आधारित शिक्षा अब भी बेहद कमजोर है।
– युवा पढ़ा-लिखा है, लेकिन नौकरी के लायक नहीं बना पाया सिस्टम।

3. नीतियों में युवा भागीदारी की कमी:

– नीति निर्माण में युवाओं की भागीदारी सिर्फ इवेंट्स और फोटो सेशन तक सीमित है।
– असल सवालों पर युवाओं की आवाज़ को या तो नजरअंदाज किया जाता है या दबा दिया जाता है।

4. राजनीति में युवाओं की भूमिका सीमित:

– युवा चुनावों में केवल वोट बैंक बनकर रह गया है।
– न तो उन्हें निर्णय लेने का हक है, न ही पारदर्शी नेतृत्व में शामिल होने का मौका।

5. सोशल मीडिया की चकाचौंध और असली मुद्दों से भटकाव:

– “विकास” अब इंस्टाग्राम पोस्ट और ट्विटर ट्रेंड का हिस्सा बन गया है।
– असली ग्राउंड रियलिटी जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार – इन पर बात करना अप्रिय और एंटी-नेशनल कहलाने जैसा हो गया है।


युवा क्या चाहता है? (What the Youth Really Wants):

  1. ट्रांसपेरेंट भर्ती प्रक्रिया – बिना पेपर लीक और भ्रष्टाचार के।
  2. योग्यता आधारित अवसर – सिर्फ डिग्री नहीं, स्किल्स को पहचान मिले।
  3. नीतियों में भागीदारी – सरकार के हर निर्णय में युवा की आवाज हो।
  4. स्वस्थ राजनीतिक माहौल – जहाँ सवाल करना गुनाह न हो।
  5. वास्तविक विकास – जो आंकड़ों में नहीं, ज़मीन पर दिखे।

आज जब देश तरक्की के बड़े-बड़े दावे कर रहा है, तब यह जरूरी है कि विकास की इस दौड़ में युवा भारत पीछे न छूटे। केवल नारों से पेट नहीं भरता, केवल योजनाओं से रोजगार नहीं मिलता, और केवल भाषणों से भविष्य नहीं बनता।

अगर वास्तव में ‘विकसित भारत’ का सपना देखना है, तो युवाओं को सिर्फ नारा नहीं, अधिकार चाहिए; सिर्फ मंच नहीं, निर्णय में भागीदारी चाहिए। नहीं तो ये ‘विकास’ एक खोखला ढांचा बन जाएगा, जिसमें युवा केवल दर्शक बनकर रह जाएगा।



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