नोट -ः उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2001 में प्रतीक चिह्नों का निर्धारण किया गया। 

राज्य चिह्न -ः राज्य के प्रतीक चिह्न में गोलाकार आकृति है, जिसमें तीन पर्वतों की श्रृंखला और उसके मध्य में अशोक की लाट तथा नीचे गंगा की चार लहरों को दर्शाया गया है। बीच की चोटी अन्य दो चोटियों से ऊंची है तथा अशोक की लाट के नीचे मुण्डकोपनिषद् से लिया गया वाक्य ’सत्यमेव जयते‘ उद्धत है। राज्य सरकार के सभी अभिलेखों में यह प्रतीक चिह्न समान रूप से प्रयुक्त किया जाता है।

                राज्य पशु - कस्तूरी मृग 

ऽ कस्तूरी मृग को 2001 में उत्तराखण्ड का राजकीय पशु घोषित किया गया।
ऽ कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है।
ऽ इसका निकनेम हिमालयन मस्क डियर है।
ऽ कस्तूरी मृग 3600 से 4400 मी. की ऊंचाई पर पाया जाता है।
ऽ राज्य में केदारनाथ, फूलों की घाटी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ में 2000 से 5000 मी. की ऊंचाई पर पाये जाते हैं।
ऽ राज्य में कस्तूरी मृग की चार प्रजातियां पाई जाती है।
ऽ इनकी औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है।
ऽ मादा मृग की गर्भधारण अवधि 6 माह होती है।
ऽ यह मृगों की आदिम जाति की प्राणी है।
ऽ कस्तूरी मृग अपनी सुन्दरता के लिए नहीं अपितु अपनी नाभि में पाये जाने वाली कस्तूरी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। कस्तूरी केवल नर मृग में पाया जाता है। यह 1 वर्ष से अधिक आयु के मृग के जननांग के समीप स्थित ग्रंथि से द्रव के रूप में स्रावित होकर नाभि के समीप स्थित एक गांठनुमा थैली में एकत्र होता है। इस गांठ का आपरेशन कर गाढ़े द्रव के रूप में कस्तूरी प्राप्त की जाती है, एक बार में 30 से 45 ग्राम ही कस्तूरी प्राप्त की जाती है। 3 वर्ष ेके अंतराल में ही कस्तूरी दोबारा प्राप्त की जा सकती है।
ऽ कस्तूरी एक जटिल प्राकृतिक रसायन है, जिसकी मनमोहक सुगंध होती है। यह दमा, निमोनिया, ह्रदय रोग, टाइफाइड, मिरगी आदि रोगों के लिए औषधि बनाने में प्रयोग किया जाता है।
ऽ कस्तूरी मृग का रंग भूरा होता है, तथा इसकी पीठ पर काले पीले धब्बे होते हैं। इसकी ऊंचाई 20 इचं तथा वजन 10 से 20 किलोग्राम तक होता है।
ऽ 1972 में तात्कालिक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चमोली के केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत 967.2 किमी. क्षेत्र पर कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई थी।
ऽ 1977 में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र, बागेश्वर की स्थापना की गइ।
ऽ 1986 में पिथौरागढ़ में अस्कोट अभयारण्य की स्थापना की गयी। यहां पर सर्वाधिक मात्रा में कस्तूरी मृग पाये जाते हैं।
ऽ 1982 में चमोली जिले के कांचुला खर्क में एक कस्तूरी मृग संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र की स्थापना की गयी।

राज्य पुष्प – ब्रह्मकमल

ऽ ब्रहमकमल को 2001 में राज्य पुष्प घोषित किया गया।
ऽ यह 4800 से 6000 मी. की ऊंचाई पर पाया जाता है।
ऽ वैज्ञानिक नाम – सोसुरिया अबवेलेटा।
ऽ एक एस्टेरेसी कुल का पौधा है।
ऽ उत्तराखण्ड में ब्रह्मकमल की 24 प्रजातियां पायी जाती है, जबकि विश्व भर में इसकी 210 से ज्यादा प्रजातियां विद्यमान हैं।
ऽ इसे स्थानीय भाषा में कौलपद्म कहा जाता है।
ऽ महाभारत के वन पर्व में ब्रह्मकमल को सौगन्धिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पुष्प को केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित कर प्रसाद रूप में बांटा जाता है।
ऽ यह एक बैंगनी रंग का होता है जो कि जुलाई से सितम्बर के मध्य खिलते है।
ऽ ब्रह्मकमल पर वर्ष 1982 में 2.85 रूपये का डाक टिकट जारी किया गया था।

राज्य पक्षी – मोनाल

ऽ मोनाल को 2001 में राज्य पक्षी घोषित किया गया।
ऽ वैज्ञानिक नाम – लोकोफोरस इंपीजेनस
ऽ निकनेम – हिमालयन मयूर
ऽ यह 2500 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।
ऽ मोनाल नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है।
ऽ मोनाल और डाफिया एक ही प्रजाति के पक्षी हैं। लेकिन मोनाल मादा तथा डाफिया नर पक्षी है।
ऽ स्थानीय भाषा में इसे मन्याल या मुनाल कहा जाता है।
ऽ उत्तर प्रदेश सरकार ने 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मोनाल को संरक्षित पक्षी घोषित किया तथा इसके शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया।
ऽ यह हरा, नीला, भूरा तथा गुलाबी रंग का होता है, इसकी पूंछ हरी होती है।
ऽ यह पक्षी अपना घोंसला नही बनता।
ऽ यह वर्ष में दो बार प्रजनन क्रिया करता है।
ऽ मोनाल पर 1975 में 2 रूपये का डाक टिकट जारी किया गया था।

राज्य वृक्ष – बुरांश

ऽ बुरांश को अंग्रेजी में रोडोडेण्ड्रान कहते हैं जो मूलतः ग्रीक भाषा का शब्द है, यह एरिकसी नैसर्गिक वर्ग का पौधा है तथा इसका वानस्पतिक नाम रोडोडेनड्रान अल्बोरियम है।
ऽ बुरांश को 2001 में राज्य का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।
ऽ यह 1500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।
ऽ इसका रंग चटक लाल तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ ही हल्का लाल मिलता है। 11000 फुट की ऊंचाई पर यह सफेद रंग के पाये जाते हैं।
ऽ स्थानीय भाषा में बुंरूशी भी कहा जाता है।
ऽ बुरांश का प्रयोग जूस बनाने हेतु भी प्रयोग किया जाता है।
ऽ वन अधिनियम 1974 के तहत बुरांश वृक्ष को संरक्षित वृक्ष घोषित किया गया।
ऽ बुरांश वृक्ष पर बसंत ऋतु में फूल खिलते हैं।
ऽ गढ़वाल व कुमाऊंनी शौर्य परम्परा को बुरांश के फूल को शौर्य/वीरता का प्रतीक माना गया है।
ऽ बुरांश पर वर्ष 1977 में 0.50 रूपये का डाक टिकट जारी किया गया था।

राज्य तितली – कॉमन पिकॉक

ऽ कॉमन पिकॉक को राज्य तितली 2016 में घोषित किया गया।
ऽ मोर की गर्दन की तरह रंग होने के कारण इस तितली का नाम कॉमन पिकॉक पड़ा है।
ऽ यह तितली टिमरू के पेड़ में अंडे देती है।
ऽ इसका वैज्ञानिक नाम पोपिलियो बिर्यार है।
ऽ इस तितली का जीवन काल 30 से 35 दिन होता है।
ऽ उत्तराखण्ड राज्य किसी तितली को प्रतीक चिह्न बनाने वाला भारत का दूसरा राज्य है। इससे पहले महाराष्ट्र ने 2015 में ब्लू मोरोन को राज्य तितली का दर्जा दिया था।

राजकीय खेल – फुटबॉल

ऽ फुटबॉल को 2011 में राजकीय खेल घोषित किया गया था।

राजकीय वाद्य यंत्र – ढोल

ऽ ढोल को 2015 में राजकीय वाद्य यंत्र घोषित किया गया था।
ऽ ढोल को भंडारी कमेटी की सिफारिश पर राजकीय वाद्य यंत्र घोषित किया गया।
ऽ राज्य में उत्तम दास ढोल सागर के एक मात्र ज्ञाता हैं।

राज्य गीत

ऽ राज्य गीत को 2016 में घोषित किया गया।
ऽ उत्तराखण्ड का राज्य गीत – ’देवभूमि मातृभूमि शत्-शत् बंदन‘ है।
ऽ राज्य गीत के लेखक हेमंत बिष्ट हैं।
ऽ संगीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी व अनुराधा निराला हैं।

राज्य भाषा

ऽ उत्तराखण्ड की दो राज्य भाषा हैं।
ऽ उत्तराखण्ड की प्रथम राज्य भाषा हिन्दी है। हिन्दी को 2001 में राज्य भाषा का दर्जा दिया गया।
ऽ उत्तराखण्ड की दूसरी राज्य भाषा संस्कृत है। संस्कृत को 2010 में राज्य भाषा का दर्जा दिया गया।
ऽ उत्तराखण्ड संस्कृत को राज्य भाषा का दर्जा देने वाला पहला राज्य है।

राजकीय फल – काफल

ऽ इसे बॉक्स मर्टल या बेबेरी भी कहा जाता है।
ऽ काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है।
ऽ काफल का वृक्ष 4000 से 6000 फीट की ऊंचाई पर होता है। यह मुख्यतः उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र के तलहटी में पाया जाने वाला एक विशाल वृक्ष है। काफल का स्वाद खट्टा-मीठा होता है।
ऽ काफल के फायदे पूरे शरीर के लिए होते हैं। यह पाचन के लिए, मानसिकता के लिए एवं अन्य कई प्रकार से फायदेमंद है।
ऽ काफल के वृक्ष की छाल का प्रयोग चर्म शोधन के

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