राजुला-मालूशाही उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध लोककथा है, जो प्रेम, बलिदान, और सामाजिक विषमताओं पर आधारित है।

पृष्ठभूमि
कहानी 14वीं-15वीं शताब्दी की बताई जाती है। इसमें कुमाऊं के राजकुमार मालूशाही और दानपुर क्षेत्र की राजुला नामक एक साधारण लड़की के बीच का प्रेम वर्णित है।

मुख्य पात्र

  1. मालूशाही
    • कत्यूर वंश के राजा मालूशाह के पुत्र।
    • सुंदर, वीर और प्रेम के प्रति समर्पित।
  2. राजुला
    • दानपुर (बागेश्वर) के एक साधारण व्यक्ति सुनपति शौका की बेटी।
    • बहुत सुंदर और चतुर।

उत्तराखंड की लोकगाथा राजुला-मालूशाही प्रेम, साहस और बलिदान की अद्भुत दास्तान है। यह कहानी कत्यूर राजकुमार मालूशाही और शौका व्यापारी की बेटी राजुला के प्रेम पर आधारित है, जो सामाजिक बंधनों और जाति-धर्म की बेड़ियों को चुनौती देती है।


कहानी का आरंभ

राजुला दानपुर (वर्तमान बागेश्वर जिले में) के शौका व्यापारी सुनपति शौका की बेटी थी। वह अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान थी। सुनपति शौका अपने समय के सबसे अमीर व्यापारियों में से एक थे।

दूसरी ओर, मालूशाही कत्यूर वंश के राजा मालूशाह का बेटा था, जो चंपावत के कत्यूर साम्राज्य का उत्तराधिकारी था।

एक दिन, मालूशाही अपने सैनिकों के साथ शिकार पर निकले। दानपुर क्षेत्र में भ्रमण के दौरान उनकी मुलाकात राजुला से हुई। राजुला की सुंदरता ने मालूशाही को मंत्रमुग्ध कर दिया। जब दोनों की आंखें मिलीं, तो वह पहली ही नजर में एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए।


राजुला का प्रेम और संदेश

राजुला ने अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए एक चतुराई भरा तरीका अपनाया। उसने अपनी एक सहेली के माध्यम से मालूशाही को संदेश भेजा। मालूशाही ने भी उसके प्रेम को स्वीकार किया और राजुला से मिलने का वादा किया।


सामाजिक बाधाएं और सुनपति शौका का विरोध

राजुला के पिता सुनपति शौका को इस प्रेम के बारे में पता चला। वे इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे क्योंकि मालूशाही एक राजा के पुत्र थे और राजुला व्यापारी वर्ग से संबंधित थी।
सुनपति शौका ने राजुला का विवाह एक समृद्ध व्यापारी के बेटे से तय कर दिया।

राजुला ने अपने पिता के निर्णय को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मालूशाही को संदेश भेजा कि वह उसे बचाने आए।


मालूशाही की यात्रा और संघर्ष

मालूशाही अपने प्रिय को बचाने के लिए अपनी सेना और साथियों के साथ दानपुर की ओर रवाना हुए। रास्ते में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका प्रेम उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा।

दानपुर पहुंचने पर मालूशाही ने राजुला के पिता से उसका हाथ मांगा, लेकिन सुनपति शौका ने इसे सिरे से नकार दिया।


षड्यंत्र और हमला

सुनपति शौका ने मालूशाही के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा। उन्होंने मालूशाही के भोजन में विष मिलवा दिया। इससे मालूशाही गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।
जब राजुला को इस षड्यंत्र का पता चला, तो उसने मालूशाही की देखभाल की और अपने प्रेम को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया।


ट्रैजेडी: प्रेम की पराकाष्ठा

मालूशाही विष के प्रभाव को सहन नहीं कर सके और उनका निधन हो गया।
राजुला ने यह देखा, तो वह पूरी तरह टूट गई। उसने अपने प्रेम को खोने के दुख में अपने प्राण त्याग दिए।


कहानी का अंत और लोककथा में महत्व

राजुला और मालूशाही का प्रेम अमर हो गया। उनकी कहानी को आज भी कुमाऊं क्षेत्र में गाया और याद किया जाता है।
उनकी प्रेमगाथा यह संदेश देती है कि सच्चा प्रेम हर बंधन से परे है, चाहे वह सामाजिक हो या जातीय।

राजुला-मालूशाही की कहानी को “जागर” के रूप में गाया जाता है। यह कथा कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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