नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध लोकगायकों और गीतकारों में से एक हैं। उन्होंने गढ़वाली और कुमाऊंनी संगीत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और उत्तराखंड की संस्कृति, समाज और राजनीति को अपने गीतों में पिरोया।
1. नरेंद्र सिंह नेगी का जीवन परिचय
- जन्म: 12 अगस्त 1949, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
- शिक्षा: डीएवी (PG) कॉलेज, देहरादून
- कैरियर की शुरुआत: 1970 के दशक में
- पहला एल्बम: “गढ़वाली गीतमाला” (1980)
- पहली फिल्म: “घरजवैं” (1983)
उन्होंने अपनी लेखनी और गायकी के माध्यम से उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समस्याओं को उजागर किया।
2. संगीत में योगदान
(क) पारंपरिक लोक संगीत को नई पहचान
- नेगी जी ने पारंपरिक झोड़ा, चौंफला, छोलिया जैसे लोकसंगीत को आधुनिक तरीके से पेश किया।
- उनके गीतों में उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता, संस्कृति, रीति-रिवाज और जन-जीवन का जीवंत चित्रण मिलता है।
(ख) सामाजिक और राजनीतिक गीत
- नेगी जी सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहे, बल्कि अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की समस्याओं को उजागर किया।
- “नौछमी नरैण” (2006) – यह गीत उत्तराखंड की तत्कालीन सरकार की नीतियों पर कटाक्ष था, जिसे जनता ने खूब सराहा।
- “तेरी बौं हवाल” – उत्तराखंड में हो रहे पलायन पर आधारित मार्मिक गीत।
(ग) प्रेम और संवेदनशीलता के गीत
- “ठंडो रे ठंडो, मेरा पहाड़ ठंडो” – पहाड़ों की ठंड और सौंदर्य का खूबसूरत वर्णन।
- “भलि भल कु थौल” – एक प्रेम गीत जो बहुत लोकप्रिय हुआ।
3. उत्तराखंड सिनेमा में योगदान
नेगी जी ने कई गढ़वाली फिल्मों के लिए भी गाने गाए, जिनमें प्रमुख हैं:
- “घरजवैं” (1983)
- “बटवारा” (1989)
- “मेघा आ”
उनके गीत उत्तराखंड की हर शादी, त्योहार और सांस्कृतिक कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
4. सम्मान और उपलब्धियाँ
- “गढ़ रत्न” की उपाधि
- उत्तराखंड के सबसे सम्मानित लोकगायकों में से एक
- हज़ारों लोकगीतों की रचना
- उनके गीतों पर शोध और अध्ययन भी हो रहे हैं
5. नेगी जी के गीतों की विशेषताएँ
✅ सरल और भावनात्मक शब्द
✅ पहाड़ी संस्कृति और जनजीवन का प्रतिबिंब
✅ सामाजिक संदेश और चेतना
✅ उत्तराखंड की प्रकृति और परिवेश का सुंदर वर्णन
6. नरेंद्र सिंह नेगी का प्रभाव और विरासत
- उनकी गायकी ने उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को नई पहचान दिलाई।
- आज भी उनके गीत गांव-गांव, शहर-शहर सुने जाते हैं।
- युवा कलाकारों को उन्होंने प्रेरित किया, जिससे उत्तराखंड लोकसंगीत को आगे बढ़ाने वाली नई पीढ़ी तैयार हो रही है।