उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की चुनौतियाँ और संभावनाएँ…

महिलाएँ सदियों से अपने परिवार, समाज और अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार स्तंभ रही हैं। खेतों की जुताई से लेकर पशुपालन, जल-संग्रहण, ईंधन इकट्ठा करना, बच्चों का पालन-पोषण — हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी है। लेकिन आज भी वे कई सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक चुनौतियों का सामना कर रही हैं।

आइए विस्तार से जानते हैं उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की स्थिति, चुनौतियाँ और आगे की संभावनाओं को:


उत्तराखंड में महिलाओं की वर्तमान स्थिति

  • साक्षरता दर:
    उत्तराखंड में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है, परंतु लगातार सुधार हो रहा है। 2011 जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर लगभग 70% है।
  • रोजगार में भागीदारी:
    महिलाएँ मुख्यतः कृषि, डेयरी, हैंडीक्राफ्ट और पर्यटन जैसे असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। स्वरोजगार की दिशा में भी वे तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
  • राजनीतिक भागीदारी:
    पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत महिलाओं को 50% आरक्षण मिला हुआ है, जिसके चलते स्थानीय शासन में उनकी भूमिका बढ़ी है।

मुख्य चुनौतियाँ

1️⃣ शैक्षिक पिछड़ापन:

  • दूरस्थ गाँवों में शिक्षा की सुविधा सीमित है।
  • लड़कियों की उच्च शिक्षा तक पहुँच अब भी एक बड़ी चुनौती है।

2️⃣ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ:

  • प्रसव, कुपोषण, मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से महिलाओं को जूझना पड़ता है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच दूर-दराज के क्षेत्रों में सीमित है।

3️⃣ आर्थिक स्वतंत्रता की कमी:

  • आर्थिक संसाधनों पर महिलाओं का सीधा नियंत्रण नहीं है।
  • महिलाएँ प्रायः घरेलू कामकाज तक सीमित रहती हैं।

4️⃣ सामाजिक मान्यताएँ और परंपराएँ:

  • पितृसत्तात्मक सोच अब भी प्रबल है।
  • महिलाओं को निर्णय लेने की स्वतंत्रता कम है।

5️⃣ माइग्रेशन (पलायन):

  • पुरुषों के पलायन के बाद महिलाएँ ‘महिला मुखिया परिवार’ चला रही हैं, जिससे उन पर दोहरी जिम्मेदारी आ जाती है।

महिला सशक्तिकरण के लिए किए जा रहे प्रयास

1️⃣ महिला मंगल दल (Mahila Mangal Dal):

  • गाँवों में महिलाओं का यह समूह समाज सुधार, स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करता है।

2️⃣ स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHGs):

  • महिलाएँ छोटे-छोटे समूह बनाकर स्वरोजगार, लघु उद्योग, हस्तशिल्प, बुनाई, दुग्ध उत्पादन जैसे कार्य कर रहीं हैं।
  • सरकार द्वारा इन्हें आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण और लोन उपलब्ध कराया जाता है।

3️⃣ सरकारी योजनाएँ:

  • मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)
  • बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान
  • प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना

4️⃣ शिक्षा में सुधार:

  • बालिकाओं को छात्रवृत्ति, मुफ्त शिक्षा सामग्री, साइकिल वितरण आदि से प्रोत्साहित किया जा रहा है।

5️⃣ महिला पुलिस बल एवं हेल्पलाइन:

  • महिला अपराधों पर अंकुश लगाने हेतु 1090 जैसी हेल्पलाइन शुरू की गई हैं।

संभावनाएँ और भविष्य की राह

डिजिटल शिक्षा:
ऑनलाइन शिक्षा से गाँवों की बेटियाँ भी तकनीकी शिक्षा हासिल कर सकती हैं।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म:
हस्तशिल्प, ऑर्गेनिक उत्पाद, लोक कला को ऑनलाइन बेचकर महिलाएँ आत्मनिर्भर बन सकती हैं।

पर्यटन में भागीदारी:
घूमंतू पर्यटन (Homestay) में महिलाओं को रोजगार मिल सकता है।

जैविक खेती:
महिलाएँ जैविक कृषि और औषधीय पौधों के उत्पादन में भी बेहतर कर सकती हैं।

स्थानीय नेतृत्व:
ग्राम पंचायत से लेकर उच्च प्रशासनिक पदों तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है।


उत्तराखंड की महिलाएँ आज बदलाव की नई इबारत लिख रही हैं। चुनौतियाँ जरूर हैं, लेकिन सरकारी प्रयासों, जागरूकता और महिलाओं के आत्मबल के कारण अब तस्वीर बदल रही है। यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक सहायता और सामाजिक समर्थन का दायरा और बढ़ाया जाए तो उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण का सपना पूरी तरह साकार हो सकता है।


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