थारु जनजाति-
थारू जनजाति उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजाति का समूह है।
थारू जनजाति सबसे अधिक उधम सिंह नगर में निवास करते हैं
( इसके अलावा खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता, सितारगंज आदि में भी निवास करते हैं)
यह कुमाऊं का भी सबसे बड़ा जनजाति समूह है ।
किरात वंशो से इनकी उत्पत्ति मानी जाती है। थार के मरुस्थल से आकर यहाँ बसने एवं स्वयं को महाराणा प्रताप का वंशज भी मानने की वजह से ही संभवत इनको “थारू” नाम मिला.
थारू जनजाति की भाषा एवं वेशभूषा:
इनकी कोई अपनी विशिष्ट भाषा नहीं है।
अवधी , नेपाली व मिश्रित पहाड़ी बोलते हैं।
पुरुष धोती, लंगोटी, कुर्ता व टोपी पहनते हैं।
महिलाएं लहंगा, चोली, कुर्ता व आभूषण धारण करती है ।
पुरुषों व महिलाओं में टैटू लोकप्रिय है।
आवास व भोजन-
आवास खेतों के निकट बनाए जाते हैं।
प्रत्येक घर के सामने मंदिर व दीवारों पर चित्रकारी सामान्य है।
चावल व मछली इनका लोकप्रिय भोजन है।
चावल निर्मित मदिरा जाड़ का सेवन करते हैं।
सामाजिक व्यवस्था-
मातृसत्तात्मक व पितृसत्तात्मक व्यवस्था है।
हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं।
अनेक गोत्र में बटे हैं जिनमें बड़वायक उच्च माना जाता है। गोत्र को कुरी भी कहा जाता है ।
विवाह हेतु निम्न रस्मे है–
अपना पराया– सगाई रस्म
बात कट्टी- विवाह तिथि निश्चित करना
पक्की पोड़ी- वधू-वर दोनों पक्षों द्वारा विवाह हेतु सहमति
पहले इनमे बदला विवाह प्रचलित था लेकिन अब तीन टिकठी प्रथा प्रचलित है.
विधवा विवाह प्रचलित है और इसपर लठभरवा भोज आयोजित होता है।
त्योहार व उत्सव-
प्रायः सभी हिंदू त्योहार का अनुसरण करते हैं।
बजहर नामक त्योहार प्रमुख है। ( जो वैशाख व जेठ में मनाया जाता है)
दिवाली को शोक पर्व के रूप में मनाते हैं।
होली में स्त्री पुरुष एक साथ डांस करते हैं जिसे( खिचड़ी नृत्य) कहा जाता है। इस जनजाति में उजली तथा अनेरी होली प्रचलित है.
अर्थव्यवस्था-
पशुपालन, कृषि, सेवा क्षेत्र आधारित (थारु लोग कुमाऊं के तराई क्षेत्र के स्थायी कृषक हैं )
मुख्यतः धान की खेती व अन्य कुटीर उद्योगों में भी संलग्न हैं.
नोट ; थारु जनजाति के सामाजिक स्वरुप में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा उच्च स्थान प्राप्त है.