राजी जनजाति-

मुख्यतः पिथौरागढ़ जनपद में निवास करती है.

राज्य की एकमात्र जनजाति है जो आज भी जंगलों में निवास करती है। ( एकमात्र आदिम जनजाति)

यह जनजाति कोल -किरात वंशज से संबंधित है।

शारीरिक संरचना : छोटा कद , ऊंचे होंठ व चौड़ा चेहरा,

सामाजिक व अर्थव्यवस्था-

विवाह पूर्व सांगजांगी व पिन्ठा प्रथा प्रचलित है.

इनके निवास स्थान को रौत्यूड़ा कहां जाता है।

मातृभाषा मुंडा है परंतु स्थानीय भाषा का भी प्रभाव देखने को मिलता है।

वधू मूल्य प्रथा का प्रचलन, पलायन विवाह कम है।

वर्तमान में शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार है।

धार्मिक जीवन-

बागनाथ, मलयनाथ, गणनाथ, सैम , मल्लिकार्जुन, नंदा देवी आदि इनके प्रमुख देवता है । बागनाथ मुख्य देवता है।

हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं

कारक संक्रांति व मकर संक्रांति इनके प्रमुख त्योहार है

इस जनजाति में विशेष नृत्य रिंगडांस (थड़िया जैसा नृत्य) प्रचलित है.

अर्थव्यवस्था-

काष्ठ कला व झूम खेती मुख्य कार्य हैं।

इस जनजाति में मूक विनिमय प्रथा देखने को मिलती है।

आखेट व जड़ी बूटी संग्रह भी मुख्य व्यवसाय है।

वर्तमान में शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-

राज्य की न्यूनतम आबादी वाली आदिम जनजाति है।

राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में इस जनजाति के प्रथम विधायक गगन सिंह रजवार थे।

झूम खेती पर प्रतिबंध के बाद मजदूरी में भी संलग्न हो हुए ।

आदिम जनजाति का पूर्ण दर्जा 1967 में दिया गया।

इस जनजाति में सप्ताह के दिनों नाम और गिनती का स्वरूप पृथक है।

सबसे कम साक्षर जनजाति हैं।

राहुल सांकृत्यायन ने भी राजियों को भाषा के आधार पर मूल किरातों से संबंधित माना है

मुख्यतः यह जनजाति पिथौरागढ़ जनपद के अस्कोट ,डीडीहाट व् धारचूला में निवास करती है.

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