केदारनाथ मंदिर भारतीय राज्य उत्तराखंड के गर्वाल जिले में स्थित है और यह हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और चार धामों में से एक धाम है जो चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। केदारनाथ मंदिर का इतिहास प्राचीन है और इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।

संभवतः केदारनाथ मंदिर का निर्माण 8वीं या 9वीं शताब्दी में हुआ है। मंदिर ने कई बार नष्ट हो जाने के बावजूद महत्वपूर्ण स्थान बनाया हुआ है और बार-बार पुनर्निर्माण किया गया है।

केदारनाथ मंदिर के इतिहास में महत्वपूर्ण घटना महाभारत काल से जुड़ी है। महाभारत के युद्ध के बाद, पांडवों ने देवभूमि में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अपनी पापों का प्रायश्चित्त किया। भगवान शिव ने उन्हें अपना दर्शन करवाने के लिए केदारनाथ में आने की सलाह दी। उसके बाद से केदारनाथ मंदिर महत्वपूर्ण शिवालय के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

मंदिर का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार किया गया है और यह पहाड़ी क्षेत्र की सुंदरता को देखते हुए बनाया गया है। मंदिर भगवान शिव के मूर्ति के रूप में जाना जाता है और इसे भागवत संगीत के नये नायक के रूप में भी जाना जाता है।

केदारनाथ मंदिर का दौरा शिव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए यात्रीगण ट्रेकिंग का सहारा लेते हैं और गर्मियों के महीनों में ही मंदिर खुलता है।

केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति की कथा पुराणों में विवरणित है। अनुसार, महाभारत काल में पांडवों के युद्ध के बाद, वे अपने द्वारा किए गए पापों के प्रायश्चित्त के लिए भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के इच्छुक थे।

पांडवों को ब्रह्मा द्वारा बताया गया कि उन्हें केदारनाथ के दर्शन करने की आवश्यकता है, जहां भगवान शिव उपस्थित होते हैं। पांडव भागिनियों के साथ राजाओं और रानियों ने उत्तराखंड के केदारनाथ तक यात्रा की और वहां पहुंचकर मंदिर का निर्माण किया।

पुराणों के अनुसार, वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित केदारनाथ मंदिर को शंकराचार्य आदि शङ्कराचार्य ने पुनः स्थापित किया था।

यह कथा और पौराणिक कथाओं में बहुत प्रसिद्ध है और केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति और महत्व को दर्शाने का एक माध्यम है। यह स्थान आध्यात्मिकता और श्रद्धा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति की जाती है।

केदारनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग के पीछे एक रोमांचक कथा है। यह कथा पुराणों में विवरणित है।

कहानी के अनुसार, शिवलिंग के पीछे की कथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर (शिव) के बीच हुई एक दिव्य विवाद पर आधारित है। यह विवाद उत्पन्न हुआ कि कौन सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ देवता है।

तब ब्रह्मा और विष्णु ने एक छल का उपयोग करके एक-एक छोटे स्तंभ पर चढ़ कर प्रतिष्ठा की योग्यता परीक्षा करने का निर्णय लिया। जहां भी कोई इस स्तंभ की शिखा को खोजता है, वही सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाएगा।

विष्णु ने अपनी अद्वैत पुरुष रूपा और ब्रह्मा ने बक रूपा अपनाया और वे अपने स्थानों से ऊँचाई पर उठकर चढ़े। ब्रह्मा शिखा को ढ़ूंढ़ने के लिए आकाश में उड़ान भरते रहे, जबकि विष्णु शिखा को खोजने के लिए पृथ्वी पर खोज में लगे।

पृथ्वी पर दौड़ते दौड़ते, विष्णु की उम्र अवधि बढ़ गई, जबकि ब्रह्मा उसे ढ़ूंढ़ नहीं पाये। उत्सुकता में, ब्रह्मा ने कमस्त्र (कांच) का एक फूल उखाड़ा और उसे शिखा के स्थान पर रख दिया, ताकि यह दिखाये कि वही उच्चतम और महत्वपूर्ण देवता है।

इस प्रकार, विष्णु को शिखा के पीछे पहुंचते हुए नहीं मिला, जबकि ब्रह्मा को उसकी जानकारी नहीं थी कि उसे कहां रखना चाहिए। इस प्रकार, केदारनाथ मंदिर में शिवलिंग के पीछे वही फूल, जिसे ब्रह्मा ने छल के द्वारा रखा था, दिखाया जाता है।

यह कथा शिवलिंग के पीछे की अद्वितीयता को दर्शाती है और केदारनाथ मंदिर को अद्वैत सिद्धांत के प्रतीक के रूप में स्थापित करती है। इसके साथ ही, यह कथा शिव की महिमा और परम शक्ति का प्रतीक भी है

केदारनाथ के रूप में भगवान शिव का अवतार माना जाता है। भगवान शिव हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति में से एक हैं, जिन्हें त्रिमूर्ति के रूप में जाना जाता है – ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर (शिव)।

भगवान शिव को सृष्टि के प्रभु और विनाश के देवता के रूप में माना जाता है। उन्हें भोलेनाथ, महादेव, नीलकंठ, रुद्र, शंकर, शिवजी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।

केदारनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग भगवान शिव के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और इसे भगवत संगीत के नये नायक के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव को नगेंद्र, भूतेश, शंकर, नीलकंठ, केदार, कैलाशपति, महादेव, उमापति, गिरीश, शंभू आदि नामों से भी पुकारा जाता है। भगवान शिव की पूजा और भक्ति का महत्वपूर्ण स्थान हिंदू धर्म में है और वे उन्हें आध्यात्मिकता, त्याग, साधना और मोक्ष का प्रतीक माने जाते हैं।

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