विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी शोध एवं विकास के लिए प्रदेश सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग व इसके अतंर्गत गठित राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट), उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क), उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र (यूसके) आदि संस्थाएं सतत प्रयत्नशील हैं। इन संस्थाओं का संक्षिप्त परिचय व राज्य में संचालित प्रमुख वैज्ञानिक गतिविधियों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है - 

उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद - राज्य में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने व लोगों में वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 21 फरवरी, 2005 को उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की स्थापना की गई हैं। यह परिषद मुख्य रूप से राज्य के विकास हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी शोध, विकास, प्रदर्शन, विस्तार, लोकव्यापीकरण, उद्यमिता विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांरण आदि कार्यक्रमों का संचालन करता है।

उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र - इस की स्थापना राज्य में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों में अनुसंधान, शिक्षण एवं प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में कार्य करने हेतु 2 फरवरी, 2006 को की गई है। इसका प्रमुख कार्य शैक्षणिक संस्थानों व अनुसंधान केन्द्रों में विचारों का आदान-प्रदान, समन्वय, निर्देशन व वैज्ञानिक वातावरण का निर्माण करना है।

उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र - सुदूर संवेदन, सुदूर शिक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, आदि क्षेत्रों में विकास हेतु उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र की स्थापना 21 सितम्बर 2005 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में की गई है। यह उपग्रहीय सुदूर संवेदन तकनीक के आधार पर अनेको प्रकार के आंकडों का सृजन व उपयोगी डेटाबेस तैयार करता है।

रूटैग - भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से राज्य में रूटैग (रूरल टेक्नालॉजी एक्शन गु्रप) परियोजना चलाई जा रही है। जिसका उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाकर लोगों के जीवन स्तर को उठना है।

़प्लेनेट अर्थ कार्यक्रम - राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा शुरू किये गये इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसी वैज्ञानिक प्रतिभाओं को राज्य एवं देश के सामने लाना है, जिन्होनें कोई नवीन अन्वेषण किया हो लेकिन साधन, सुविधाओं आदि के अभाव में वह लोगों के समाने न आ पाया हो। यह कार्यक्रम विद्यालयों में गोष्ठी, परिचर्चा, प्रतियोगिता, प्रदर्शनी आदि के माध्यम से चलाई जा रही है।

विज्ञानधाम - विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को शिक्षा एवं उद्योग से जोड़ने से क्रम में झाझारा (देहरादून) में विज्ञानधाम की स्थापना की जानी है। यह साइंस सिटी की जरूरत को पूरा करेगा। यहां एक म्यूजियम तथा अनेक शोध एवं प्रयोग सामग्री होंगें। यहां वैज्ञानिक गोष्ठिया, प्रदर्शनियां आदि भी होंगी।

आरोही परियोजना – राज्य में हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट के समस्त विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए यह परियोजना 10 मई 2002 को माइक्रोसॉफ्ट तथा इंटेल कम्पनियों के सहयोग से शुरू की गई। इस परियोजना के तहत राज्य के हजारों विद्यालयों व डायटों में कम्प्यूटर लैब स्थापित किये गये हैं, जिनमें प्रतिवर्ष लाखों छात्र व हजारों शिक्षक प्रशिक्षित हो रहें हैं। शिक्षिकों के विशेष प्रशिक्षण के लिए देहरादून में माइक्रोसॉफ्ट अकादमी की भी स्थापना की गई है।

शिखर परियोजना – एक्टेक और ई.सी.आई.एल. कम्पनियों के सहयोग से यह परियोजना महाविद्यालयों में रोजगार उन्मुख आई.टी. शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई है। इसके तहत एम.सी.ए. कोर्स के समतुल्य पाठ्यक्रम वाले एडवांस डिप्लोमा इन साफ्टवेयर इंजीनियरिंग कोर्स भी चलाये जा रहे हैं। योजना के अतंर्गत सरकार निजी कंपनियों को महाविद्यालयों में कम्प्यूटर लैब तैयार कर उपलब्ध कराई है। जबकि शिक्षा सामग्री एवं प्रमाण पत्र निजी कम्पनीयों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
निजी कम्पनियों द्वारा विद्यार्थियों को यह कोर्स कम दर पर कराये जा रहें हैं।
परियोजना के तहत टिहरी के नरेन्द्रनगर में एच.पी. द्वारा आई.टी. अकादमी की स्थापना की गई है।

सिस्को परियोजना – सिस्को का राज्य सरकार के साथ तकनीकी संस्थाओं में वर्ल्ड वाइड कार्यक्रम संचालित करने व नेटवर्क के क्षेत्र में सर्टिफाइड नेटवर्क एडमिनिस्ट्रटर कोर्स चलाने हेतु समझौता हुआ है। छात्रों को सी.सी.एन.ए. में डिप्लोमा डिग्री दी जा रही है। यह कार्यक्रम कई तकनीकी विद्यालयों में चल रही है।

हरमीटेज भवन नैनीताल – आई. टी. की नवीनतम तकनीकों को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने और विभिन्न आई. टी. अकादमियों का परस्पर समन्वय कर उन्हें राज्य के समग्र विकास में भागीदार बनाने के लिए नैनीताल के हरमीटेज भवन को सरकार ज्ञान के उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में स्थापित किया है। इस भवन को अब कुमायूं वि.वि. को हस्तांतरित कर दिया गया है। भवन में माइक्रोसॉफ्ट, आई.बी.एम., सिस्को, ऑरिकल आदि विश्व विख्यात कम्पनियों के केन्द्रों की स्थापना की गई है।

डी-स्पेस डिजीटल लाइब्रेरी योजना – यह परियोजना एच.पी. के सहयोग से राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालय को आपस में नेटवर्किंग के जरिए जोड़ने के उद्देश्य से चलाई जा रही है। इससे विश्वविद्यालयों में चल रहे शोध तथा अध्ययन-अध्यापन कार्यों के परस्पर समन्वय में मदद मिलती है।

ज्ञानोत्कर्ष परियोजना – इस परियोजना का संचालन इंटेल कम्पनी द्वारा किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत सरकारी कर्मियों को व्यक्तिगत कम्प्यूटर क्रय करने की व्यवस्था है। इसका संचालन ब्लाक मुख्यालय तक किया जाना है। इसके तहत कर्मचारी कम्प्यूटर क्रय के लिए आसानी से ऋण प्राप्त कर सकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी – सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राज्य में अवस्थापना सुविधाओं का विकास बड़ी तेजी से हो रहा है। आई. टी. पार्को की स्थापना का लाभ दिया जा रहा है। देहरादून के सहत्रधारा में 65 एकड़ क्षेत्र में आई. टी. पार्क (दून साइबर टावर) का विकास किया गया है।
पंतनगर में भी जैव प्रौद्योगिकी (बी. टी.) के साथ सूचना प्रौद्योगिकी (आई. टी.) पार्क की स्थापना की गई है। माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी द्वारा देहरादून में आई. टी. अकादमी की स्थापना की गई है। जबकि नरेन्द्रनगर (टिहरी) में एच. पी. कम्पनी द्वारा आई. टी. अकादमी की स्थापना की गई है।
देहरादून के सेलाकुई में सॉफ्टवेयर टेक्नालॉजी पार्क की स्थापना की गई है।

ई-गवर्नेंस – सरकारी काम-काज में शीघ्रता लाने और सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी जनता को उपलब्ध कराने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग ही ई-गवर्नेंस है। इसके महत्व को देखते हुए राज्य सरकार ने 2001 को ई-गवर्नेंस वर्ष घोषित किया था। इससे सरकारी काम-काज में तेजी और पारदर्शिता आई है। कर्मचारियों के कार्यक्षमता में वृद्धि हुई है। आई.टी. के प्रयोग से योजनाओं के अनुश्रवण का सरलीकरण हुआ है।
राज्य में भू-अभिलेखों के लिए देवभूमि नामक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। अब खसरा-खतौनी की नकल कम्प्यूटर से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। भूमि का क्रय-विक्रय भी अब आसान हो गया है।
राज्य क्षेत्रीय विस्तार नेटवर्किंग (स्वान) परियोजना के लिए सरकार व बीएसएनएल के मध्य समझौता किया गया है।
प्रदेश में स्टेट डाटा सेंन्टर पोर्टल व स्टेट सर्विसेज डिलीवरी गेटवे की स्थापना की गई है।
राज्य में यू.एन.डी.पी से सहयोग से 105 सरकारी विभागों एवं संस्थाओं की सूचनांए उत्तरा नामक पोर्टल पर उपलब्ध कराई गई है – जैसे कृषि पोर्टल पर कृषि संबंधी सूचनाएं, संस्कृति पोर्टल पर सांस्कृतिक जानकारियां आदि।

-डिस्ट्रिक्ट परियोजना – ई-गवर्नेंस के अंतर्गत केन्द्र पोषित यह योजना राज्य में 2009 में पौड़ी जिले में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य विभिन्न प्रकार की सरकारी सेवाओं को सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना है। अब इसका विस्तार शेष 12 जिलों में किया जा रहा है।

जनाधार ई-सेवा – राज्य में तहसीलों में निवास, आयु, हैसियत, चरित्र, जाति आदि प्रमाण पत्र मात्र 10 रू में उपलब्ध कराने के लिए सेवा शुरू की गयी है। कम्प्यूटर आधारित इस सेवा का पूरा नाम पं दीन दयाल जनधार ई सेवा है।

आयुष ग्राम – नागरिकों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सभी जिलों में एक-एक आयुष ग्राम की स्थापना की प्रदेश सरकार की योजना है। इन ग्रामों में अस्पताल के अतिरिक्त स्वास्थ्य लाभ केन्द्र, होटल व हर्बल गार्डन आदि होगें। राज्य के प्रथम आयुष ग्राम की स्थापना भवाली में की जा रही है। इस आयुष ग्राम की कर्ताधर्ता मशहूर हर्बल कंपनी इमामी ग्रुप है। यहां झंडू सहित अनेक आयुर्वेदिक यूनिटें स्थापित की जा रही है। यहां गरीबों का मुफ्त इलाज भी होगा।

पंतजलि फूड एवं हर्बल पार्क – 25 फरवरी, 2009 को केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री श्री सुबोधकांत सहाय ने हरिद्वार के पदार्था गांव में रामदेव जी द्वारा स्थापित किये जा रहे पंतजलि फूड एवं हर्बल पार्क का शिलान्यास किया। यह विश्व का सबसे बड़ा और अनोखा फूड पार्क है। इस पार्क में प्रतिदिन 800 टन से अधिक सब्जी और विभिन्न फलों आदि का जूस तैयार करने की क्षमता हैं। यहां कई राज्यों के किसानों के उत्पादों का उपयोग किया जाता है।

गैस पाइप लाइन – केन्द्र सरकार आंवला (बरेली उ.प्र.) से ऊधम सिंह नगर के काशीपुर तक गैस पाइपलाइन बिछाने को अपनी मंजूरी प्रदान की है। इसकी एक शाखा रूद्रपुर तक जायेगी।

सोलर सिटी – केन्द्र सरकार ने देश के 11 शहरों को सोलर सिटी के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। इन 11 शहरों में उत्तराखंड के देहरादून को भी सम्मिलित किया गया है। चयनित शहरों में स्ट्रीट लाइटें, होर्डिंग्स लाइटें, ट्रैफिक सिग्नल आदि सोलर सिस्टम से संचालित होंगी।

प्रो-पुअर आई.टी. इनिशिएटिव प्रोजेक्ट – राज्य में यू.एन.डी.पी. द्वारा वित्त पोषित प्रो-पुअर आई. टी. इनिशिएटिव प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन आई.आई.टी. रूड़की के माध्यम से किया जा रहा है। इसके अंतर्गत नैनीताल जनपद में पायलेट परियोजना के तहत 40 सूचना कुटीरों की स्थापना की गयी है। आगे इसका विस्तार किया जायेगा। इन सूचना कुटिरों पर ग्रामवासी विभिन्न प्रकार की सूचनाओं यथा बोर्ड परीक्षाफल, विभिन्न विभागों के संबंध में जानकारी विभिन्न विषय विशेषज्ञों से राय आदि प्राप्त कर सकते हैं।

जैव प्रौद्योगिकी – कृषि से लेकर अनेक क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के महत्व को देखते हुए सरकार इसके शोध और विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। पंतनगर में एक जैव प्रौद्योगिकी पार्क के अलावा निजी क्षेत्र के सहयोग से एक प्लांट टिश्यू कल्चर लैब की भी स्थापना की गई है। नैनीताल के पटवाडांगर में भी एक जैव प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की गई है।

पर्यावरण संस्थान – पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए कटार मल (अल्मोड़ा) में पंडित गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की स्थापना की गई है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विश्व बैंक की सहायता से राज्य में इसकी दो प्रयोगशालाएं (देहरादून एवं हल्द्वानी) कार्य कर रही है।

फेलोशिप – राज्य सरकार पर्यावरण सुरक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए पीताम्बर पंत राष्ट्रीय पर्यावरण फेलोशिप प्रदान करती है।

पर्यावरण पुरस्कार – पर्यावरण सुरक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य में कई पुरस्कार दिये जाते है। जैसे – गढ़रत्न सम्मान, हिमालयन इवायरमेंट अवार्ड, सीसीआई ग्रीन अवार्ड आदि।

इको क्लब – केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु राज्य के विद्यालयों में इको क्लबां का गठन किया गया है।

उत्तराखंड सेवा निधि – केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित यह संस्था क्षेत्रीय स्रोत एजेन्सी के रूप में उत्तरांचल में राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान चला रही है।

सेंटर ऑफ एक्सीलेन्स – शीतोष्ण फलों के उत्पादन को बढ़ावा एवं आधारभूत सुविधाओं की स्थापना हेतु उत्तराखंड औद्यानिक एवं वानिकी वि.वि. भरसार पौड़ी में सेंटर ऑफ एक्सीलेन्स की स्थापना की गई है।

पर्यावरण मित्र की योजना – कूड़े-कचरे के निस्तारण से संबंधित यह योजना सर्वप्रथम श्रीनगर के अधिकारी हरक सिंह रावत के पहल पर 2006 में शुरू की गई। इस योजना के तहत शहरों में जगह-जगह ट्राली रिक्शा युक्त पर्यावरण मित्र तैनात किये गये हैं। जो घरों से निकलने वाले जैव व अजैव कूड़े को अलग-अलग उठाते हैं। योजना के तहत खुले में कूड़ा फेंकना पूर्णतः प्रतिबंधित है। एकत्र किये गये जैविक कूड़े से खाद बनाया जाता है, जबकि अजैविक कूड़े को रिसाइकिलिंग हेतु बेच दिया जाता है।

इको टैक्स – 21 सितम्बर 2009 से मंसूरी में नगरपालिका परिषद द्वारा वाहनों से इको टैक्स वसूला जा रहा है।

माइक्रो मीटिरियोलॉजिकल टावर – वानिकी व पर्यावरण संबंधी शोध हेतु इस स्पेशल टावर की स्थापना देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान में की गई है।

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