उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन और सतत विकास

(Disaster Management and Sustainable Development in Uttarakhand)

उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र में स्थित है, जो प्राकृतिक सुंदरता, पवित्र धार्मिक स्थलों और जैव विविधता से भरपूर है। लेकिन यहाँ की भौगोलिक स्थिति इसे आपदाओं के लिए अति संवेदनशील भी बनाती है। भूस्खलन, बादल फटना, भूकंप, बाढ़ जैसी आपदाएँ यहाँ आम हो गई हैं। ऐसे में राज्य के विकास को टिकाऊ (Sustainable) बनाना और आपदा प्रबंधन को मज़बूत करना समय की आवश्यकता बन चुका है।


उत्तराखंड में प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ

1️⃣ भूस्खलन (Landslides):

  • पहाड़ी ढलानों पर सड़क निर्माण, अवैज्ञानिक निर्माण, और भारी वर्षा से भूस्खलन होते हैं।
  • खासकर मानसून और सर्दियों में घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

2️⃣ बाढ़ (Floods):

  • नदियों का जलस्तर बढ़ना, ग्लेशियर पिघलना, बादल फटना आदि प्रमुख कारण हैं।
  • 2013 की केदारनाथ आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

3️⃣ बादल फटना (Cloudburst):

  • अचानक भारी वर्षा का गिरना जिससे तटीय क्षेत्रों में तबाही मचती है।
  • 2021 में भी उत्तरकाशी व कुमाऊँ क्षेत्र में कई बादल फटने की घटनाएँ हुईं।

4️⃣ भूकंप (Earthquakes):

  • उत्तराखंड भूकंपीय क्षेत्र-4 व 5 में आता है।
  • वैज्ञानिक बार-बार बड़े भूकंप की आशंका व्यक्त कर रहे हैं।

आपदा प्रबंधन की वर्तमान स्थिति

  • राज्य में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) कार्यरत है।
  • SDRF, NDRF, पुलिस और सेना की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
  • ड्रोन, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और सेंसर्स के माध्यम से निगरानी।
  • आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) को अपग्रेड किया जा रहा है।

सतत विकास की चुनौतियाँ

  • पर्यावरण संतुलन बनाये रखना कठिन हो रहा है।
  • अंधाधुंध निर्माण कार्य और वनों की कटाई बढ़ रही है।
  • पर्यटन और धार्मिक यात्राओं का दबाव इकोलॉजिकल बैलेंस बिगाड़ रहा है।
  • ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

1️⃣ ग्रीन रोड पॉलिसी 2023:

  • सड़कों का निर्माण पर्यावरण अनुकूल तरीके से किया जा रहा है।

2️⃣ मास्टर प्लान 2040:

  • शहरी विकास योजनाओं में सतत विकास को प्राथमिकता।

3️⃣ चारधाम यात्रा के लिए स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट।

4️⃣ वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण अभियान।

5️⃣ पलायन आयोग द्वारा गाँवों के पुनर्निर्माण की योजनाएँ।


समाधान और सुझाव

  • वैज्ञानिक तरीके से निर्माण कार्य किया जाए।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को कठोरता से लागू किया जाए।
  • आपदा प्रबंधन में स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़े।
  • पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति सजगता बढ़ाई जाए।

उत्तराखंड की प्रकृति जितनी खूबसूरत है उतनी ही संवेदनशील भी। यदि हम विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं देंगे तो आने वाली पीढ़ियों के लिए संकट खड़ा हो सकता है। राज्य को सतत विकास मॉडल अपनाना होगा जिसमें पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था तीनों का संतुलन बना रहे। आपदा प्रबंधन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुदृढ़ करना अनिवार्य है।

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